उत्तराखंड में सशक्त भू-कानून लागू करेगी धामी सरकार

Dhami Government:उत्तराखंड में सशक्त भू-कानून लागू करेगी धामी सरकार

Pushkar Singh Dhami

Dhami Government: देवभूमि में सशक्त भू-कानून और मूल निवास लागू करने की मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारियों, संगठनों और दलों ने बुधवार को मुख्यमंत्री आवास कूच किया। बुधवार को क्रांति दिवस पर उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के बैनर तले एक दर्जन से अधिक संगठनों और दलों के कार्यकर्ता परेड ग्राउंड में जुटे।

यहां से मूल निवास लागू करो, सशक्त भू-कानून लागू करो के नारे लगाते एस्लेहॉल, क्वालिटी चौक, राजपुर रोड, दिलाराम चौक होते हुए मुख्यमंत्री आवास कूच किया। वही सशक्त वह कानून को लेकर कांग्रेस ने भी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए कांग्रेस का कहना है कि पुरानी भू कानून को खत्म करके त्रिवेंद्र सरकार में कानून में बदलाव किए गए थे जो कि प्रदेश के हित के लिए नहीं था प्रदेश में एक सशक्त वो कानून होना चाहिए और सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मानें तो उनकी कैबिनेट में वह कानून को लेकर चर्चा की गई है और एक सशक्त गोकानो प्रदेश में जलाया जाएगा।

आखिर उत्तराखंड में क्या है भू कानून?

Dhami Government: आजकल उत्तराखंड राज्य में भू-कानून की मांग जोरों से चल रही है, आइए हम आपको बताते हैं क्या है उत्तराखंड में भू कानून जिसकी की मांग चल रही है. इस भू कानून के क्या फायदे हैं और क्या नुकसान और क्यों उत्तराखंड के लोग इस कानून की मांग कर रहे हैं.

उत्तराखंड में इस बात की मांग चल रही है कि हिमाचल प्रदेश की तरह राज्य में भी भू कानून लागू करने की कवायद की जाए. इसी की तर्ज पर उत्तराखंड में भी यहां के लोग भू कानून की मांग कर रहे हैं. 1972 में हिमाचल प्रदेश में कानून बनाया गया. इस कानून के अंतर्गत दूसरे राज्यों के लोग हिमाचल प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकते थे. असल में उस समय हिमाचल आज की तरह संपन राज्य नहीं था, तो इस बात का डर था कि वहां के लोग मजबूरी में अपनी जमीन बाहर से आए लोगों को न बेच दें.

हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भू-कानून की मांग

तब हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर यशवंत सिंह परमार यह कानून लेकर आए कि राज्य से बाहर के लोग धारा 118 के तहत हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि नहीं खरीद सकते. इसके बाद 2007 में धूमल सरकार ने धारा 118 में संशोधन करते हुए उन बाहरी राज्यों के व्यक्तियों को जमीन खरीदने की इजाजत दी, जो इस राज्य में 15 साल से रह रहे हैं. इसके बाद आई सरकार ने इस 15 साल की अवधि को बदल कर 30 साल कर दिया यानी हिमाचल प्रदेश में बाहरी राज्य से आया कोई भी व्यक्ति जमीन नहीं ले सकता. इसी तरह उत्तराखंड में भू कानून की मांग उठ रही है.

निवेश और उद्योग को बढ़ावा देने के लिए खत्म किया भू कानून

Dhami Government: ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में पहली इस बार भू कानून की मांग हो रही है, इससे पूर्व भी भू कानून की मांग होती रही है. उत्तराखंड राज्य में पहली बार भू कानून 9 नवंबर 2000 को राज्य की स्थापना के बाद 2002 में एक प्रावधान किया गया था कि अन्य राज्य के लोग उत्तराखंड में सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे लेकिन बाद में 2007 में इसे घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया गया. इसका मतलब यह था कि किसी अन्य राज्य के व्यक्ति को अगर उत्तराखंड में जमीन खरीदनी है तो वह अधिकतम 250 वर्ग मीटर कृषि जमीन ही खरीद सकता था.

लेकिन 6 अक्टूबर 2018 को उत्तराखंड सरकार एक नया अध्यादेश लेकर आई जिसके मुताबिक उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन का विधायक पारित किया गया. इसमें दो धाराएं 143 और धारा 154 जोड़ी गई. जिसके तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया. यह फैसला उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में निवेश और उद्योग को बढ़ावा देने के लिए किया था. जिससे यह हुआ की किसी भी अन्य राज्य का व्यक्ति उत्तराखंड में जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकता था.

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