भारत की सैन्य शक्ति पर चीन ने उठाया सवाल, क्या भारत देगा इसका जवाब?

China Raised Question on Indian Military

PM Modi

China Raised Question on Indian Military: सिंगापुर में आयोजित कार्यक्रम में एशियाई देशों के अहम सुरक्षा फोरम शांगरी-ला डायलॉग में हिस्सा ले रहे एक चीनी दल ने भारत की सैन्य क्षमता पर सवाल उठा कर एक नई जुबानी जंग की शुरुआत कर दी है.

शांगरी- ला डायलाॅग में हुई प्रेस कॅान्फ्रेंस के दौरान चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के शिष्टमंडल ने कहा भारत की सैन्य शाक्ति चीन के लिए चुनौती नहीं बन सकती.

उनका कहने का मतलब था की सेना के आधुनिकीकरण और डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग क्षमता में भारत चीन को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है.

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ के मुताबिक़ पीएलए एकेडमी ऑफ मिलिट्री साइंसेज़ के सीनियर कर्नल झाओ जियाझाऊ ने कहा, “आने वाले कुछ दशकों के दौरान भारत सैन्य ताकत में चीन का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं होगा क्योंकि इसका औद्योगिक इन्फ्रास्ट्रक्चर कमज़ोर है. जबकि चीन सेना के लिए मैन्युफैक्चरिंग के बड़े और आधुनिक प्लेटफॉर्म बना चुका है.”

चीनी सेना के वरिष्ठ अधिकारी की इस टिप्पणी के बाद चीन और भारत की सेना की मौजूदा ताकत की तुलना शुरू हो गई है.

विश्लेषकों का कहना है कि चीनी सेना बेहद मजबूत है ये सच है लेकिन ये भी सच है कि हाल के कुछ सालों में भारत ने अपनी सेना के अधुनीकीकरण पर क़ाफी ज़ोर दिया है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के आंकड़ों के मुताबिक़ 2018 से 2022 तक भारत ने दुनिया भर में सबसे ज़्यादा हथियारों का आयात किया. इस दौरान इसके 31 फीसदी हथियार अकेले रूस से आए.

चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षा और भारत की खुद को सुपरपावर बनाने की तैयारीयां

भारत की तैयारी भी सैन्य शक्ति में दिन प्रतिदिन प्रबल होती जा रही है. दूसरी ओर, आर्थिक तौर पर लगातार मज़बूत होने के साथ ही चीन की सामरिक महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ती जा रही हैं.

पीएलए नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और शांगरी-ला डायलॉग में हिस्सा लेने आए वरिष्ठ कर्नल झांग ली भी इस बात को मानते हैं.

उन्होंने ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ से कहा कि भारत खुद को सुपरपावर बनाने के लिए सेना को मज़बूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है.

फिलहाल चीन खुद को अमेरिका के गंभीर प्रतिस्पर्द्धी के तौर पर देख रहा है. साथ ही एशिया में उसके मुकाबले भारत और जापान जैसी बड़ी ताकतें भी हैं.

इंडो-पैसिफिक से लेकर दक्षिण चीन सागर तक चीन और उसके प्रतिस्पर्धियों के बीच कई मोर्चे खुले हुए हैं. इसलिए चीन लगातार अपनी सैन्य क्षमताओं को मज़बूत करने में लगा है.

चीन की अर्थव्यवस्था का ग्रोथ टारगेट 5 फीसदी है और वो अपनी सेना पर सात फीसदी अधिक खर्च कर रहा है. वहीं भारत की अर्थव्यवस्था का ग्रोथ रेट अगले वित्त वर्ष में सात फीसदी से कम रहने की संभावना है लेकिन इसका रक्षा बजट 13 फीसदी बढ़ा है.

गलवान झड़प के बाद भारत की तैयारीयां शुरु

साल 2020 में चीन के सैनिकों के साथ लद्दाख के गलवान में हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की मौत के बाद भारत ने अपनी रक्षा तैयारियों को बेहद गंभीरता से लेना शुरू किया है.

अमेरिकी थिंक टैंक यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस का कहना है इस संघर्ष के बाद भारत ने चीन से लगी अपनी सीमाओं पर सैन्य तैयारियों को काफी रफ़्तार दी है.

एलएसी में भारत ने लगभग 50 हजार अतिरिक्त सैनिक लगाए हैं. भारतीय वायुसेना को सीमाओंं के नजदीक तैनात किया गया है.

बॉर्डर से लगे इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत किए जा रहे हैं.

एलएसी से सटी 73 स्ट्रैटेजिक सड़कें तैयार की जा रही हैं. अरुणाचल प्रदेश में ही 1430 मील लंबी सड़क तैयार हो रही है.

भारत के 5.94 लाख करोड़ रुपये के रक्षा बजट में से 1.62 लाख करोड़ रुपये नए हथियार और सैन्य साजो-सामान के लिए निर्धारित किए गए हैं.

चीन की शक्ति देखकर क्या भारत को ड़र जाना चाहिए?

पड़ोसी देश चीन अपनी सेना पर भारत से ज्यादा खर्च करता है. तो क्या भारत को अपनी तुलना में चीन का रक्षा बजट ज्यादा होने पर चिंतित होना चाहिए?

” चीन और अमेरिका सामरिक तौर पर दुनिया में खुद को जहां स्थापित करना चाहते हैं उसके लिए उन्हें ज्यादा खर्च करना पड़ेगा. जरूरी नहीं भारत इसमें उनके साथ प्रतिस्पर्द्धा कर ज्यादा खर्च करे.‘’

शांगरी-ला डायलॉग में चीनी सेना के अधिकारियों ने भारत की सैन्य क्षमताओं पर जो सवाल उठाए उनमें कितना दम है?

येलेरी कहते हैं, “भारत रक्षा उत्पादन में अब डाइवर्सिफाई कर रहा है. भारत रूस, फ्रांस, अमेरिका और इसराइल से हथियार खरीदता रहा है. लेकिन अब वह हथियार और सैन्य साजो-सामान की मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है. रक्षा क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियां आ रही हैं. भले ही ये खर्च रक्षा बजट में न दिखे लेकिन हथियारों और सैन्य साजो-सामान में खर्च बढ़ रहा है.’’

भारत का रक्षा बजट कम लेकिन तैयारियां मजबूत

पड़ोसी देश चीन अपनी सैन्य तैयारियों को लेकर काफी आक्रामक है. क्या भारत को इससे चिंतित होना चाहिए?

येलेरी कहते हैं, “भारत की अपनी रक्षा जरूरतें हैं और वो उन्हीं को देख कर ये काम कर रहा है. वहीं चीन की महत्वाकांक्षा काफी बड़ी है. वह हिंद महासागर, इंडो-पैसिफिक से लेकर दक्षिण चीन सागर तक, यानी अलग-अलग जाकर बंदरगाह बनाने से लेकर कई तरह के इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर रहा है. इसलिए उसका रक्षा खर्च बढ़ रहा है.”

येलेरी का कहना है कि सैन्य मामलों में भारत चीन की तुलना में ज्यादा जिम्मेदार और विश्वसनीय देश रहा है. इसलिए भारत का रक्षा बजट कम है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो रक्षा तैयारियों पर जोर नहीं दे रहा है.

“पिछले कुछ सालों में भारत ने सैन्य तैयारियों पर अच्छा-खासा काम किया है. आप पाएंगे कि भारत ने डिफेंस रिसर्च पर काम किया है और इसका असर मैन्युफैक्चरिंग पर पड़ा है.’’

येलेरी कहते हैं कि अगर किसी देश का रक्षा खर्च ज्यादा दिख रहा है लेकिन वो सिर्फ खरीद रहा है तो इससे उसकी आत्मनिर्भरता कम हो रही है.

भारत इस स्थिति को समझता है. इसलिए जैसे-जैसे युद्ध का स्वरूप बदल रहा है भारत उसी हिसाब से अपनी तैयारियों को अंजाम दे रहा है.

‘चीन की क्षमताओं को अभी परखना बाकी’

शांगरी-ला डायलॉग में चीन ने भारत की डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग पर सवाल उठाया है. लेकीन सवाल यह भी है कि अस्ट्रेलिया और अमेरिका के सामने चीन की मैन्युफैक्चरिंग गुणवत्ता टिकती कहां है.

चीन के पास डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग हो सकती है लेकिन सवाल है कि इसकी गुणवत्ता कितनी है? अभी इसे परखा नहीं गया है. चीन हर साल एक जंगी बेड़ा बना रहा है या युद्धपोत तैयार कर रहा है. लेकिन गुणवत्ता में ये कहां टिकता है, ये बड़ा सवाल है.

येलेरी कहते हैं कि नौसेना में भारत सदियों से बड़ी ताकत रहा है. चोल और मराठा शासकों के पास मजबूत नौसेना थी.

जबकि चीन इस मामले में कमजोर रहा है. चीन ने समुद्र में कोई युद्ध नहीं लड़ा है. इसलिए इस मामले में उसकी क्षमता संदिग्ध है.

अरविंद येलेरी कहते हैं कि ये कहना गलत है कि भारत की डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग कमजोर है इसलिए उसकी सैन्य क्षमता कमजोर हो सकती है.

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