बेटी की कस्टडी के लिए मां की जंग, जर्मनी की कोर्ट ने किया मां-बेटी को अलग
Ariha Shah Case: बॉलीवुड एक्ट्रेस रानी मुखर्जी की फिल्म ‘मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ 17 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई. फिल्म को लोगो ने काफी सराहा. फिल्म की कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित थी, जिसमें एक भारतीय मां नार्वे के एक फोस्टर केयर में बंधक बनाए गए अपने दो बच्चों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ती है. इस भारतीय मां का नाम है सागरिका भट्टाचार्य. सागरिका ने अपनी लड़ाई पर एक आत्मकथा लिखी है, जिसका नाम ‘द जर्नी ऑफ ए मदर’ है. हम आपको इस फिल्म और सागरिका के बारे में इसलिए बता रहें है क्योंकि एक ऐसा ही मामला जर्मनी से आया है जहां एक परिवार अपनी 22 महीने की बच्ची को पाने के लिए लड़ाई लड़ रहा है.
मामला 23 सितंबर 2021 का है जब सात महीने की बच्ची अरिहा शाह को उसकी मां धारा शाह अस्पताल लेकर पहुंचती है. लेकिन अस्पताल में इलाज के बाद डॉक्टर बच्ची को मां के हवाले ना करके चाइल्ड केयर सर्विस को फोन करके बुला लिया और बच्ची को उन्हें दे दिया. तब से लेकर आज तक ये परिवार अपनी बच्ची को पाने के लिए लड़ा..
क्या है पूरा मामला
Ariha Shah Case: अहमदाबाद के रहने वाले पति-पत्नी भावेश और धारा शाह वर्क वीजा पर जर्मनी के बर्लिन गए थे. सब कुछ अच्छा चल रहा था.इस दौरान उनकी बेटी आरिहा को किसी तरह प्राइवेट पार्ट पर चोट लग गई. घबराई मां धारा शाह जब अपनी बेटी को अस्पताल ले कर जाती है तो उल्टा परिजनों पर ही बच्ची से यौन उत्पीड़न का आरोप लगा दिया जाता है. जिसके बाद अरिहा को प्रशासन ने फोस्टर केयर होम भेज देता है. सितंबर 2021 के बाद से ही यो परिवार अरिहा की कस्टडी के लिए कानूनी जंग लड़ रहा है. आपको बता दें की डॉक्टर को अरिहा के डाइपर पर खून मिला था.
क्या कहना है आरिहा की मां धारा शाह का ?
Ariha Shah Case: अरिहा की मां के मुताबिक हम पर झूठे-झूठे इल्जाम लगाए गए..लेकिन हम पीछे नहीं हटे क्योंकि हम सच्चे है . हम अपनी बच्ची को खुद डॉक्टर के पास लेकर गए थे. सभी मामले को लेकर वेरिफाई हो गईं. जिस हॉस्पिटल हम आरिहा को लेकर गए थे और जिसने चाइल्ड केयर को बुलाया था, उनहोने खुद 2021 में रिपोर्ट भी दे दी थी. उस रिपोर्ट में उन्होंने सेक्सुअल एब्यूज को खारिज कर दिया था . बच्ची के पिता और दादा के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला था. फरवरी 2022 में पुलिस ने यह केस बंद कर दिया. तब हमें लगा कि इन लोगों जो भी गलतफहमी थी, वो क्लियर हो गई है. अब हमें हमारी बच्ची मिल जाएगी लेकिन बावजूद सभी क्लीयरिफिकेशन के चाइल्ड केयर ने पेरेंटल कस्टडी को टर्मिनेट करने का केस जारी रखा गया. फैमिली कोर्ट ने हमारी पैरेंटल एबिलिटी रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए.
अब तर्क दे रहे हैं कि बच्ची को अटैचमेंट डिसऑर्डर है. अंजानों से घुल-मिल जाती है. रिकमंडेशन में कहा कि बच्ची पैरेंट्स के साथ बहुत खुश है. बिल्कुल भी नहीं घबराती है. बहुत प्यार से रहती है. इसलिए बच्ची को पैरेंट्स चाइल्ड फैसिलिटी में रखा जाए. जर्मन कोर्ट अपॉइंट एक्सपर्ट ने बोला कि बच्ची को पैरेंटस के साथ रखा जाए. भारत सरकार ने बोला कि बच्ची को यहां लाया जाए. हम उसकी देखभाल करेंगे. हम इस संबंध में कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे थे.
पिछले हफ्ते पता चला कि जर्मन चाइल्स सर्विस ने बच्ची को 20 महीने से जिस जगह पर रखा था, वहां से उठाकर इंस्टीट्यूट में डाल दिया है. चिल्ड्रन सेंटर में रखा है, ये सेंटर मंदबुद्धि बच्चों के लिए होते हैं. मां धारा शाह ने पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी याद किया था. उन्होंने कहा, ‘सुषमा स्वराज एक मां थीं, इसलिए वह एक मां का दर्द समझती थीं. यहां तक कि विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने हमेशा इस कारण का समर्थन किया.
दो साल बाद कस्टडी से दावा खो देगा परिवार?
Ariha Shah Case: अरिहा की मां धारा का कहना है कि इस साल अगस्त के अंत में अरिहा को फोस्टर केयर होम में दो साल पूरे हो जाएंगे. जर्मनी सरकार के नियमों के तहत अगर किसी बच्चे को फोस्टर केयर होम में रहते हुए दो साल हो जाते हैं तो उस बच्चे को उनके मां-बाप को नहीं लौटाया जाता है. ऐसे में बच्ची की वापसी पर संकट आ जाएगा. धारा बताती हैं कि कई भारतीय माता-पिता ने इन आरोपों को झेला है और बच्चों को उनकी हिरासत से हटा दिया गया है. हर बार जब देश के पीएम हस्तक्षेप करते हैं और मामले को लेकर बात करते हैं, तब इसमें मदद मिलती है.
ये भी पढ़ें: NCC ट्रेनिंग के नाम पर छात्रों की पिटाई, वीडियो सोशल मीडिया पर हुआ वायरल
1 thought on “बेटी की कस्टडी के लिए मां की जंग, जर्मनी की कोर्ट ने किया मां-बेटी को अलग”