रुसी राष्ट्रपति पुतिन की बैठक में न होने की पुष्टि को लेकर भारत ने किया फैसला
Russia’s president absence in SCO: 4 जुलाई को भारत में होने वाली SEO बैठक पर बीते मंगलवार केंद्र सरकार ने उसे वर्चुअली आयोजित करने का निर्णय लिया. इस साल SCO ( शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन ) की अध्यक्षता भारत के पास है जो कि दिल्ली में आयोजित होने वाली थी.
इस बैठक में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के राष्ट्रीध्यक्षों को हिस्सा लेना था. जिसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग,रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तानी पीएम शाहबाज़ शरीफ़ जैसे नेता सम्मिलित है. इन नेताओं को भारत आने का न्यौता भी भेजा गया था.
दरहसल़ सरकार ने मंगलवार को अपना यह फैसला बदल दिया ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत सरकार की ओर से यह क़दम उठाने की वजह क्या हो सकती है केंद्र सरकार इस बैठक को आयोजित करने के लिए पिछले कई महीनों से तैयारी भी कर रही थी.
भारत के विदेश मंत्रालय ने बैठक वर्चुअली कराने की घोषणा तो की लेकिन इन-पर्सन नहीं कराने की कोई ठोस वजह नहीं बताई थी. एससीओ चीन के दबदबे वाला संगठन है और भारत की स्थिति इसमें हमेशा बहुत सहज नहीं रही है.
इससे पहले ऑस्ट्रेलिया में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के नहीं आने से क्वॉड समिट टल गया था. क्वॉड को कई लोग चीन विरोधी गुट मानते हैं. क्वॉड में ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमेरिका हैं.
आख़िर क्या वजह हो सकती है बैठक को स्थागित करने की
कूटनीतिक सूत्रों के नज़रिये से भारतीय मिडिया अलग-अलग अनुमान लगाए जा रही है.
अंग्रेजी अख़बार द हिंदू में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, सरकार की ओर से लिए गए इस फ़ैसले की वजह एससीओ नेताओं के कार्यक्रम को लेकर बना हुआ असमंजस था.
कूटनीतिक सूत्रों ने अख़बार को बताया है कि ‘उन्हें सरकार के क़दम की जानकारी विदेश मंत्रालय की ओर से एलान किए जाने से ठीक पहले मिली थी. भारत की एससीओ राष्ट्रीय समन्वयक योजना पटेल की ओर से सोमवार को सभी सदस्य देशों को एक अर्जेंट मैसेज़ भेजा गया था.’
एक अन्य सूत्र ने अख़बार को बताया है, “सरकार की ओर से उठाए गए इस क़दम की एक वजह एससीओ नेताओं के कार्यक्रम से जुड़ी चुनौतियां हो सकती है. इसके साथ ही सरकार को चीन और पाकिस्तान के नेताओं की ओर से उनके कार्यक्रम को लेकर पुष्टि नहीं मिली थी.”
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी बताया गया है कि इस क़दम की वजह से भारत के चीन और पाकिस्तान के साथ ठंडे रिश्ते हैं.
हालांकि, रूस और चीन के मामलों पर नज़र रखने वाले जेएनयू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉ राजन कुमार इन तर्कों से सहमत नज़र नहीं आते. क्योंकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे पहले समरकंद जाकर इन नेताओं से मिल चुके हैं. यही नहीं, आने वाले दिनों में जब भारत में जी20 की बैठक होगी, तब इन देशों के नेता नई दिल्ली आएंगे.
इसके साथ ही डॉ राजन कुमार मानते हैं कि प्रगति मैदान में बनाए जा रहे कॉन्फ्रेंस वेन्यू के निर्माण कार्य में देरी होने की वजह भी बेमानी सी लगती है. क्योंकि बैठक कहीं ओर भी आयोजित हो सकती है.
रुसी राष्टपति पुतिन का भारत आने का मसला
रुसी राष्ट्रपति पुतिन और अन्य नेताओ का बैठक में सम्मिलित न होना
माना जा रहा था कि पुतिन एससीओ बैठक में शामिल होने दिल्ली आ सकते हैं.
लेकिन पिछले महीने मॉस्को में हुए दो हमलों और यूक्रेन संघर्ष के एक नए दौर में प्रवेश करने से क्रेमलिन की चुनौतियां बढ़ती दिख रही हैं.
यूक्रेन और रूस साल 2022 के फ़रवरी महीने से युद्धरत हैं. इस युद्ध में पश्चिमी देशों की ओर से यूक्रेन को आर्थिक और सैन्य साजो-सामान के स्तर पर मदद उपलब्ध कराई जा रही है.
इसके साथ ही हाल ही में यूक्रेन को लड़ाकू विमान मिलने का रास्ता भी साफ़ होता दिख रहा है.
डॉ राजन कुमार बताते हैं, “अगर इस फ़ैसले की वजह रूस से जुड़ी हुई है तो निश्चित रूप से पुतिन अभी इस तरह के युद्ध में फंसे हुए हैं कि उनका बाहर निकलना मुश्किल होगा. यूक्रेन का युद्ध अब एक नए दौर में प्रवेश करता दिख रहा है.
पहले क्रेमलिन पर हमला हुआ और अब मॉस्को में ड्रोन हमला हुआ है. ऐसे में उनकी चुनौतियां बढ़ रही हैं. ऐसे में उनके लिए ये एक समस्या हो सकती है. भारत उनकी चिंताओं को गंभीरता से लेगा.”
यह फ़ैसला अचानक क्यों लिया गया
अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से एक सूत्र ने बताया कि एससीओ समिट वर्चुअली कराने का एक कारण सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के आने या नहीं आने पर संशय भी हो सकता है.
हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, ”सरकार को एससीओ देशों के कुछ नेताओं से आने की पुष्टि नहीं हुई थी. इनमें चीन और पाकिस्तान भी शामिल हैं. इसके अलावा यूक्रेन में जारी जंग की आंच मॉस्को पहुँच गई है. ऐसे में रूसी राष्ट्रपति पुतिन को लेकर भी संशय की स्थिति थी.
और 14 जुलाई को उन्हें फ़्रांस के नेशनल डे परेड में शामिल होना है.”
2020 में एससीओ की अध्यक्षता रूस के पास थी और रूस ने कोविड महामारी के कारण इसका आयोजन वर्चुअली ही किया था. 2021 में एससीओ समिट ताजिकिस्तान में हुआ था और यह हाइब्रिड मोड में था. कुछ सदस्य देश इसमें वर्चुअली शामिल हुए थे.
पिछले साल एससीओ समिट उज़्बेकिस्तान के समरकंद में हुआ था और यह इन-पर्सन था. प्रधानमंत्री मोदी समेत सभी सदस्य देश इसमें शामिल हुए थे.
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने इसे एक तीर से कई निशाने साधने वाला कदम बताया है.
उन्होंने ट्वीट करके लिखा है, “एससीओ समिट वर्चुअल होने से पाकिस्तान से जुड़ी समस्याओं का हल मिल गया है. शहबाज़ शरीफ़ अभी सियासी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और उनके लिए एससीओ समिट में आना आसान नहीं था.
अनुच्छेद 370 पर पाकिस्तान ने ख़ुद ही चीज़ों को जटिल बना दिया है और गोवा में एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक में भुट्टो का आना भी नाकाम रहा था. वर्चुअल समिट कारण मीडिया के जोड़ तोड़ से राहत मिली है.”
हालांकि बैठक टालने की एकाएक वजह क्या है ये तो आने वाले दिनो में ही पता चलेगा.
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