धनखड़ का इस्तीफा: बीमारी या दबाव की राजनीति?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक दिया गया इस्तीफा कई राजनीतिक संकेतों से जुड़ा हुआ दिखाई देता है। हाल ही में उन्होंने राज्यसभा में एक विपक्षी प्रस्ताव को स्वीकार किया था, जिसके बाद से उनके और सरकार के बीच मतभेद की खबरें सामने आने लगी थीं।

ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है — क्या यह इस्तीफा वास्तव में स्वेच्छा से दिया गया, या उन्हें इसके लिए मजबूर किया गया?
विपक्ष इसे “स्वास्थ्य की आड़ में लिया गया राजनीतिक फैसला” बता रहा है। धनखड़ जैसे स्पष्टवक्ता और मुखर नेता का इस तरह अचानक हटना केवल व्यक्तिगत कारणों से हुआ, यह मानना थोड़ा मुश्किल लगता है।

स्वास्थ्य या बहाना?

धनखड़ की हालिया स्वास्थ्य स्थितियों पर नज़र डालें तो:

  • मार्च में उन्हें AIIMS में भर्ती कराया गया था।
  • जून में उत्तराखंड के एक कार्यक्रम में वे बेहोश हो गए थे।

इन घटनाओं से यह साफ है कि उनकी सेहत वाकई कुछ हद तक खराब थी।
लेकिन जिस तरह बिना पूर्व संकेत के उन्होंने अपना इस्तीफा सौंपा, उस पर कई सवाल उठे हैं। क्या यह महज़ संयोग है या किसी गहरे राजनीतिक समीकरण का हिस्सा?

राजनीतिक मतभेद की आशंका

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, धनखड़ ने जो प्रस्ताव स्वीकार किया था, वह न्यायपालिका से जुड़े विवादास्पद मुद्दे पर था।
सरकार इस निर्णय से खुश नहीं बताई जा रही है। सूत्रों के अनुसार:

  • उन पर इस्तीफे का दबाव डाला गया ताकि टकराव से बचा जा सके।
  • कुछ अंदरूनी रिपोर्ट्स तो यहां तक कहती हैं कि अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही थी।

अब क्या होगा?

धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति का पद रिक्त हो गया है।
भारतीय संविधान के अनुसार, 6 महीनों के भीतर इस पद के लिए चुनाव कराना अनिवार्य है।
तब तक राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी संभालेंगे।

क्या यह सचमुच सिर्फ़ स्वास्थ्य का मामला है?

धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय आया है जब उन्होंने सरकार की मंशा के विपरीत एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी।
उनकी हालिया स्वास्थ्य समस्याएं निश्चित रूप से चिंता का विषय रही हैं, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियाँ यह संकेत देती हैं कि यह फैसला शायद उतना सरल नहीं जितना बताया जा रहा है।

आने वाले दिनों में इस रहस्य से पर्दा उठ सकता है

(This article is written by Shlok Devgan , Intern at News World India.)

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