दिल्ली का लाल किला काला पड़ रहा है

शाहजहां का लाल किला, जो दिल्ली के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में से एक है और 2007 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया, अब गंभीर संकट का सामना कर रहा है। हाल ही में भारत और इटली के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन से पता चला कि राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की वजह से किले का रंग धीरे-धीरे काला पड़ रहा है।

कालेपन का कारण

अध्ययन के अनुसार, हवा में मौजूद जहरीले प्रदूषक लाल बलुआ पत्थर की दीवारों पर “काली परतें” बना रहे हैं। यह परतें न केवल किले की सुंदरता को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि इसके पत्थरों को भी धीरे-धीरे घिस रही हैं, जिससे संरचना की दीर्घकालिक स्थिरता खतरे में है।

विशेषज्ञों ने बताया कि यह काली परत जिप्सम, क्वार्ट्ज, सीसा, तांबा और जस्ता जैसी भारी धातुओं से युक्त प्रदूषण से बनती है।

मोटी परतों का खतरा

2021 से 2023 के बीच किए गए शोध में किले की सतह से नमूने लिए गए। उनके निष्कर्षों में पाया गया कि लाल बलुआ पत्थर पर 55 से 500 माइक्रोमीटर मोटी काली परतें बन गई हैं। ये परतें जिप्सम, बेसानाइट और वेडेलाइट जैसी यौगिकों से बनी हैं।

लाल से सफेद तक का सफर

दिल्ली का लाल किला कभी सफेद रंग का था। शाहजहां ने इसे 17वीं शताब्दी में चूने के प्लास्टर से बनवाया था। बाद में अंग्रेजों ने इसे लाल रंग से रंगवाया, जो अब प्रदूषण की वजह से कालेपन की चपेट में है।

अन्य ऐतिहासिक स्मारक भी खतरे में

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो हुमायूं का मकबरा, सफदरजंग का मकबरा और अन्य ऐतिहासिक स्थल भी जल्दी प्रभावित हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं के सुझाव

  • किले के उच्च जोखिम वाले हिस्सों के लिए नियमित रखरखाव और सफाई
  • नए पत्थरों के टूटने को रोकने के लिए पत्थर-सुरक्षात्मक कोटिंग का उपयोग।
  • कालेपन की शुरुआती परत को समय पर हटाना ताकि पत्थर को नुकसान न पहुंचे।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इन उपायों से किले के क्षरण की प्रक्रिया धीमी की जा सकती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसका विशिष्ट लाल रंग सुरक्षित रखा जा सकता है।

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