डूबते सूर्य को अर्पित होगा जल, महत्व और नियम

छठ महापर्व में भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है।
आज छठ पूजा का तीसरा दिन है — जिसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है।
इस दिन भक्त डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की लंबी आयु की कामना करते हैं।

आज छठ संध्या अर्घ्य का समय

छठ पूजा के चार दिनों में तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
आज संध्या अर्घ्य यानी डूबते सूर्य को जल अर्पित करने का शुभ समय है।

🔹 संध्या अर्घ्य का समय — शाम 4:50 बजे से 5:41 बजे तक
🔹 अगला चरण — कल सुबह ऊषा अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य देकर) व्रत का पारण किया जाएगा।

इस दौरान भक्त निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्य व षष्ठी माता के मंत्रों का जाप करते हुए अर्घ्य अर्पित करते हैं।

सूर्य को जल चढ़ाने के नियम

छठ पूजा में सूर्य को जल चढ़ाना एक पवित्र अनुष्ठान है।
इसे सही विधि से करने पर पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।

संध्या अर्घ्य के नियम इस प्रकार हैं:

  1. तांबे के लोटे या पात्र में जल भरें।
  2. जल में लाल चंदन, सिंदूर और लाल पुष्प मिलाएं।
  3. सूर्य को अर्घ्य देते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करें।
  4. दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाकर जल अर्पित करें।
  5. अर्घ्य देते समय “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का जाप करें।
  6. सूर्य की ओर मुख करके तीन परिक्रमा करें।
  7. ध्यान रखें कि जल आपके पैरों पर न गिरे — जल को गमले या जमीन पर रख दें।

संध्या अर्घ्य का धार्मिक महत्व

छठ पर्व में संध्या अर्घ्य का विशेष आध्यात्मिक अर्थ है।
यह सूर्य देव की पत्नी प्रत्यूषा को समर्पित होता है, जो सूर्य की अंतिम किरण मानी जाती हैं।

संध्या अर्घ्य —

  • कृतज्ञता और संतुलन का प्रतीक है।
  • यह प्रकृति के प्रति धन्यवाद और जीवन के उतार-चढ़ाव को स्वीकारने की भावना को दर्शाता है।
  • माना जाता है कि संध्या अर्घ्य से संतान की लंबी आयु, सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

छठ पूजा का सार

छठ पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, अनुशासन और आस्था का उत्सव है।
संध्या अर्घ्य के माध्यम से भक्त सूर्य देव को धन्यवाद देते हैं,
जो पृथ्वी पर जीवन, प्रकाश और ऊर्जा के स्रोत हैं।

कल ऊषा अर्घ्य के साथ यह चार दिवसीय व्रत संपन्न होगा —
और भक्त अपनी मन्नतें पूरी होने की प्रार्थना करेंगे।

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