डिजिटल लत: थकान, तनाव और टूटता संतुलन

युवा पीढ़ी पर इसका असर ज़्यादा क्यों?
1. ऑनलाइन पढ़ाई और वर्क फ्रॉम होम
महामारी के बाद से छात्रों और युवा प्रोफेशनल्स के लिए स्क्रीन टाइम कई गुना बढ़ गया है।
स्कूल-कॉलेज की ऑनलाइन क्लासेस हों या ऑफिस का वर्क फ्रॉम होम, अब पर्सनल और प्रोफेशनल ज़िंदगी की सीमाएं धुंधली हो गई हैं।
2. सोशल मीडिया की लत
Instagram, TikTok, Snapchat, X जैसे प्लेटफॉर्म हर पल हमें तुलना के लिए मजबूर करते हैं।
FOMO (Fear of Missing Out), फॉलोअर्स और लाइक्स का दबाव, मानसिक थकावट को और बढ़ा देता है।
3. सामाजिक जुड़ाव में कमी
ऑनलाइन दोस्ती में वो गहराई नहीं होती जो असल जीवन में होती है।
युवाओं की एक बड़ी संख्या खुद को हमेशा “कनेक्टेड” होने के बावजूद अकेला महसूस करती है।
4. जानकारी की बाढ़
आज के युवा हर दिन हजारों मीम्स, वीडियो, ट्रेंड्स और न्यूज को देखते हैं।
इतनी ज़्यादा जानकारी मस्तिष्क को बिना ब्रेक के थका देती है।
मानसिक स्वास्थ्य पर असर
- चिंता और अवसाद
- दिर्घकालिक तनाव (Chronic Stress) — लगातार Cortisol का बढ़ना
- सामाजिक दूरी — रिश्तों से कटाव, अकेलापन
- ध्यान और उत्पादकता में गिरावट
- डिजिटल लत — फोन या इंटरनेट के बिना बेचैनी
- गंभीर मानसिक असर — पैनिक अटैक या आत्महत्या के विचार तक
समाधान क्या हो सकते हैं?
1. डिजिटल डिटॉक्स
हर दिन कुछ समय या हफ्ते में एक दिन स्क्रीन से दूर रहें।
यह तनाव को कम करता है और नींद में सुधार लाता है।
2. 20‑20‑20 नियम
हर 20 मिनट स्क्रीन देखने के बाद, 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें।
यह आंखों और दिमाग को आराम देता है।
3. माइंडफुल स्क्रोलिंग
ज़रूरत से ज़्यादा कंटेंट, रील्स या लोगों को अनफॉलो करें।
केवल वही चीज़ें देखें जो आपको खुशी दें, न कि तुलना का कारण बनें।
4. ऑफलाइन हॉबीज़ अपनाएं
संगीत सुनें, किताब पढ़ें, वॉक करें या कोई कला सीखें।
ये गतिविधियां दिमाग को रिचार्ज करती हैं।
5. नींद सुधारें
सोने से एक घंटा पहले स्क्रीन बंद करें।
ब्लू लाइट फिल्टर का इस्तेमाल करें — इससे नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है।
6. थेरेपी या काउंसलिंग लें
अगर लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें।
थेरेपी से आत्म-नियंत्रण और स्थिरता में मदद मिलती है।
निष्कर्ष
डिजिटल तकनीक हमारी ज़िंदगी को आसान बनाती है, लेकिन बिना संतुलन के इसका इस्तेमाल हमारे मानसिक स्वास्थ्य को धीरे-धीरे खोखला कर सकता है।
इसलिए ज़रूरी है कि हम डिजिटल और असली ज़िंदगी के बीच एक संतुलन बनाएं।
क्योंकि असली जुड़ाव और मानसिक शांति, सिर्फ स्क्रीन पर नहीं — हमारे अंदर होती है।
(This article is written by Shreya Bharti, Intern at News World India.)

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