Recep Tayyip Erdoğan Wins President Elections: तुर्की में फिर जीते अर्दोआन, क्या भारत के लिए चिंता की बात ?

Erdoğan Wins President Elections

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप अर्दोआन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ

Recep Tayyip Erdoğan Wins President Elections: तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे घोषित हो गए हैं. रेचेप तैय्यप अर्दोआन फिर से राष्ट्रपति चुनाव जीत गए हैं. अर्दोआन पिछले दो दशकों से तुर्की की कमान संभाल रहे हैं और इतना लंबा अरसा सत्ता में रहने के बाद भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

पीएम मोदी ने अर्दोआन को दी जीत की बधाई

लेकिन ये भी जानना बेहद दिलचस्प होगा है कि अर्दोआन की जीत (Recep Tayyip Erdoğan Wins President Elections) भारत के लिए क्या मायने रखती है? वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्दोआन को जीत की बधाई दे दी है. पीएम मोदी ने बधाई देते हुए उम्मीद जताई है कि आने वाले वक़्त में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध अच्छे होंगे और वैश्विक मुद्दे पर भी सहयोग बढ़ेगा.

9 सालों के कार्यकाल में मोदी कभी नहीं कर पाए तुर्की का दौरा

मोदी ने भले ही बधाई दे दी है लेकिन उन्हें पता है कि अर्दोआन के सत्ता में रहते हुए भारत से रिश्ते सहज नहीं रहे हैं. पिछले नौ सालों में पीएम मोदी ने मध्य-पूर्व के कई देशों का दौरा किया लेकिन तुर्की कभी नहीं गए.

कश्मीर का विशेष दर्ज खत्म किए जाने पर तुर्की ने पाकिस्तान का दिया था साथ

2019 में मोदी तुर्की का दौरा करने वाले थे लेकिन ऐन मौक़े पर दौरा रद्द हो गया था. पाँच अगस्त 2019 को कश्मीर का विशेष दर्जा निरस्त करने किए जाने पर तुर्की ने खुलकर इसका विरोध किया था. अर्दोआन ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की आम सभा में भी उठाया था.

कश्मीर पर पाकिस्तान परस्त रहा है अर्दोआन का रुख

कश्मीर पर अर्दोआन की राय और लाइन पाकिस्तान के पक्ष में रही है. भारत के लिए हमेशा से यह असहज करने वाला रहा है. तुर्की इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी (Organization of Islamic Corporation, OIC) में भी कश्मीर को लेकर हमलावर रहा है.

भारत कश्मीर को बताता आया है खुद का आंतरिक मामला

भारत तुर्की की इन आपत्तियों के जवाब में लगातार ये कहता रहा है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और तुर्की की अंतररांष्ट्रीयों मंचों पर टिप्पणी भारत के आंतरिक मामलो में हस्तक्षेप है.

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप अर्दोआन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ

पूर्व सचिव ने अर्दोआन की जीत पर भारत के लिए जताई चिंता (Erdoğan Wins President Elections)

भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने भी ट्वीट कर इस बात पर चिंता जताई है कि अर्दोआन की जीत भारत के लिए किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है.

कंवल सिब्बल ने अपने ट्वीट में लिखा है, ”तुर्की में अर्दोआन की जीत भारत के लिए बहुत सहज स्थिति नहीं है. तुर्की कश्मीर पर इस्लामिक लाइन पर समर्थन पाकिस्तान को देगा. ओआईसी में भी कश्मीर पर सक्रिय रहेगा. पाकिस्तान के साथ तुर्की की जुगलबंदी चिंताजनक है. ऑटोमन साम्राज्य वाला अर्दोआन का लक्ष्य भी विनाशकारी है. अर्दोआन के नेतृत्व में तुर्की का ब्रिक्स में आना किसी भी मायने में ठीक नहीं है. रूस के साथ भी अर्दोआन की दोस्ती बहुत अच्छी है.”

शीत युद्ध के वक्त से है तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़

तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ रहा है. कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 1950 के शुरुआती दशक या फिर शीत युद्ध के दौर में होती है.

1948 में तुर्की और भारत के बीच शुरू हुआ था राजनयिक संबंध

इसी दौर में भारत-पाकिस्तान (India- Pakistan) के बीच दो जंग भी हुई थी. तुर्की और भारत के बीच राजनयिक संबंध 1948 में स्थापित हुआ था. तब भारत को आज़ाद हुए मुश्किल से एक साल ही हुआ था.

दशकों में नहीं हो पाई क़रीबी साझेदारी विकसित

इन दशकों में भारत और तुर्की के बीच क़रीबी साझेदारी विकसित नहीं हो पाई. कहा जाता है कि तुर्की और भारत के बीच तनाव दो वजहों से रहा है. पहला कश्मीर (Kashmir) के मामले में तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ और दूसरा शीत युद्ध (Cold War) में तुर्की अमेरिकी खेमे में था जबकि भारत गुटनिरपेक्षता की वकालत कर रहा था.

नेटो का हिस्सा रहा है तुर्की

नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो (North Atlantic Treaty Organization, NATO) दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था. तुर्की इसका सदस्य था. नेटो को सोवियत यूनियन विरोधी संगठन के रूप में देखा जाता था.

बग़दाद पैक्ट से भी पैदा हुई थी दूरियां

इसके अलावा 1955 में तुर्की, इराक़, ब्रिटेन, पाकिस्तान और ईरान ने मिलकर ‘बग़दाद पैक्ट’ किया था. बग़दाद पैक्ट को तब डिफ़ेंसिव ऑर्गेनाइज़ेशन कहा गया था.

इसमें पाँचों देशों ने अपनी साझी राजनीति, सेना और आर्थिक मक़सद हासिल करने की बात कही थी. यह नेटो की तर्ज़ पर ही था. 1959 में बग़दाद पैक्ट से इराक़ बाहर हो गया था. इराक़ के बाहर होने के बाद इसका नाम सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन कर दिया गया था. बग़दाद पैक्ट को भी सोवियत यूनियन के ख़िलाफ़ देखा गया. दूसरी तरफ़ भारत गुटनिरपेक्षता की बात करते हुए भी सोवियत यूनियन के क़रीब लगता था.

पूर्व राष्ट्रपति तुरगुत ओज़ाल ने की थी संबंध बेहतर करने की कोशिश

जब शीत युद्ध कमज़ोर पड़ने लगा था तब तुर्की के ‘पश्चिम परस्त’ और ‘उदार’ राष्ट्रपति माने जाने वाले तुरगुत ओज़ाल ने भारत से संबंध पटरी पर लाने की कोशिश की थी.

1986 में भारत आए थे ओज़ाल, पूर्व पीएम राजीव गांधी ने 1988 में किया तुर्की का दौरा

1986 में ओज़ाल ने भारत का दौरा किया था. इस दौरे में ओज़ाल ने दोनों देशों के दूतावासों में सेना के प्रतिनिधियों के ऑफिस बनाने का प्रस्ताव रखा था. इसके बाद 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तुर्की का दौरा किया था. राजीव गांधी के दौरे के बाद दोनों देशों के रिश्ते कई मोर्चे पर सुधरे थे.

कश्मीर पर तुर्की का रुख़ से नहीं बढ़ी दोनों देशों की नज़दीकियां

लेकिन इसके बावजूद कश्मीर के मामले में तुर्की का रुख़ पाकिस्तान के पक्ष में ही रहा इसलिए रिश्ते में नज़दीकी नहीं आई.

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