Adipurush Controversy: आदिपुरुष ने लगाई देश में आग

Adipurush Controversy: आदिपुरुष जिसने न केवल भारत में बल्कि नेपाल में भी बवाल मचा दिया है. रामायण पर आधारित डायेरक्टर ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष में सीधे तौर पर मेकर्स ने सिर्फ हिन्दू संस्कृति का अपमान भर ही नहीं किया है बल्कि इतिहास से भी साफतौर से छेड़छाड़ करने की कोशिश की है.
राम नाम पर बॉलीवुड में कुछ भी चलेगा !
आधुनिकता काल्पनिक कला की आज़ादी के नाम पर फिल्म में भगवान राम या सीता माता के आदर्शों को नहीं बल्कि फुहड़ता को परोसा गया है. इस बात में दो मत बिल्कुल भी नहीं हो सकते कि फिल्में बनाने में मोटा पैसा खर्च होता है.
ख़राब डायलॉग.. विवादित वेशभूषा !
मेकर्स और कलाकार भी इससे अच्छी कमाई करना चाहते हैं. लेकिन पौराणिकता और आधुनिकता के नाम पर आने वाली पीढ़ी को गलत संदेश दिया जा रहा है.
भाषा, सीन, किरदार.. ‘आदिपुरुष’ पर बवाल ज़ोरदार !
मूवी में भगवान राम की मूंछे, खिलजी जैसा रावण का लुक, सेट की बनावट और सजावट से लेकर हिन्दू धर्म के ईष्ट भगवान हनुमान जिनकी बल, बुद्धि, विद्या की साक्ष्य कई हज़ारों सदियां रही हैं. जो परम पूज्य हैं. जो सर्वोपरी हैं. उनका रोल निभाने वाले कलाकार से मवाली और टपोरिपन जैसे डायलॉग बुलवाना. सिर्फ एक ग़लती भर तो नहीं हो सकती.
ओम और मनोज ने लांघी मर्यादा की लक्ष्मण रेखा !
बेशक से फिल्म के डायलॉग राइटर मनोज मुंतशिर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए हफ्ते भर के भीतर संवादों में बदलाव की बात कही है.. लेकिन सवाल ये है कि क्या वो इसकी संवेदनशीलता से पहले से वाकिफ़ नहीं थे.
हनुमान का किरदार.. भाषा तार-तार ! (Adipurush Controversy)
“कपड़ा तेरे बाप का! तेल तेरे बाप का! जलेगी भी तेरे बाप की”
“तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने चला आया”
“जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे उनकी लंका लगा देंगे
“आप अपने काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं””
मेरे एक सपोले ने तुम्हारे शेषनाग को लंबा कर दिया अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है”
संस्कृत को टपोरिपन से जोड़ने का ये रिमिक्स, जरूर ही मनोज शुक्ला ने इन डायलॉग्स को लिखने के लिए उच्च स्तरीय प्रैक्टिस की होगी. तभी तो अपने शब्दों के मायाजाल से तीन घंटे की एक फिल्म तैयार कर डाली.
विवादित सीन्स हटाने की मांग.. नेपाल में भी पाबंदी
इतना ही नहीं माता जानकी को जनकपुर की बेटी नहीं भारत की बेटी बता डाला. जिसके बाद नेपाल में फिल्म पूरी तरह से बैन हो चुकी है.
आदिपुरुष की विवाद कथा ! (Adipurush Controversy)
यूं कह सकते हैं कि ये रामायण नहीं बल्कि एक टिपिकल फिल्म है जिसका पात्र केवल मनोरंजन मात्र है. लेकिन आदिपुरुष जैसी फिल्में कई अहम सवाल खड़े कर देती हैं.
आज़ादी के नाम पर कितनी बर्बादी ! (Adipurush Controversy)
सवाल ये है कि क्या इतना आसान है किसी भी फिल्म मेकर्स के लिए क्रिएटिवटी के नाम पर कुछ भी परोस देना. क्या हिन्दू धर्म की भावनाएं आहत करना इतना आसान है. मर्यादा पुरोषत्तम भगवान राम जो हमारे आराध्य हैं. उनपर फिल्मे बनाने से पहले मेकर्स रिसर्च करने से परहेज़ कर लेते हैं. क्या सेंसर बोर्ड की तरफ़ से भी हुई है अनदेखी. फिल्मों में आज़ादी के नाम की लक्ष्मण रेखा को किसने लांघा है.
अनेकों सवाल हैं. जिन्हें शब्दों में पिरो पाना मुमकिन भी नहीं है.
आदिपुरूष पर किसने लांघी लक्ष्मण रेखा ?
सच तो ये है कि रामायण न तो पौराणिक हो सकती है और न ही आधुनिक. भगवान राम निराकार नहीं हैं बल्कि साकार हैं. अगर कोई भी निर्माता निर्देशक किसी धर्म से जुड़ी फिल्में बनाना चाहता है तो जाहिर तौर पर उसे संवदेनशीलता, भावनाओं और मूल्यों का ध्यान रखना जरूरी है. क्योंकि फिल्मों में दिए गए संदेश एक या दो दिन तक नहीं रहते बल्कि सदियों तक छाप छोड़ जाते हैं.
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Written By: Aarti Agravat
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