बिहार चुनाव 2025: रील्स, डेटा और सियासत

बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक बयानबाजी अपने चरम पर है।
जहां सत्ता पक्ष अपनी उपलब्धियों का बखान कर रहा है, वहीं विपक्ष सरकार की नाकामियों को मुद्दा बना रहा है।
इसी बीच, चुनावी बहस का नया केंद्र बना है — इंटरनेट डेटा और सोशल मीडिया रील्स।
प्रधानमंत्री मोदी, राहुल गांधी और प्रशांत किशोर — तीनों नेताओं के बयान अब बिहार की सियासत को नई दिशा दे रहे हैं।
पीएम मोदी का बयान — “1 जीबी डेटा, एक कप चाय से भी सस्ता”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को बिहार में चुनाव प्रचार की शुरुआत की।
अपने पहले भाषण में उन्होंने कहा कि भारत में 4G आने के बाद इंटरनेट सबसे सस्ता हुआ है, जिससे आम जनता को बड़ा फायदा मिला है।
उन्होंने कहा —
“आज भारत में 1 जीबी डेटा एक कप चाय से भी सस्ता है।”
मोदी ने यह भी बताया कि बिहार के कई युवा इंटरनेट से अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं और रील्स के ज़रिए अपनी कला दुनिया के सामने ला रहे हैं।
राहुल गांधी की टिप्पणी — “अंबानी-अडानी के बेटे रील नहीं देखते, पैसे गिनते हैं”
प्रधानमंत्री के बयान के बाद बिहार कांग्रेस ने मोदी पर तंज कसा।
पार्टी ने राहुल गांधी का एक पुराना वीडियो साझा किया, जिसका शीर्षक था — “अंतर साफ है”।
इस वीडियो में राहुल गांधी कहते दिखे —
“आजकल के युवा दिन में 7-8 घंटे रील देखते हैं और दोस्तों को भेजते हैं। अंबानी-अडानी के बेटे वीडियो नहीं देखते, पैसे गिनने में व्यस्त रहते हैं।”
राहुल गांधी का यह बयान युवाओं के समय बर्बाद करने और सामाजिक असमानता पर सवाल उठाता है।
जहां मोदी रील्स को अवसर बता रहे हैं, वहीं राहुल इसे भटकाव का कारण कह रहे हैं।
प्रशांत किशोर का पलटवार — “हमें डेटा नहीं, बेटा चाहिए”
प्रधानमंत्री के बयान पर जन सुराज आंदोलन के प्रमुख प्रशांत किशोर (PK) ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने कहा —
“प्रधानमंत्री ने कहा बिहार में सस्ता डेटा उपलब्ध है, लेकिन मैं कहना चाहता हूं — हमें डेटा नहीं, बेटा चाहिए।
आप फैक्ट्रियां गुजरात ले गए और डेटा बिहार को दे रहे हैं, ताकि यहां के लोग अपने बच्चों को सिर्फ वीडियो कॉल पर ही देख सकें।”
पीके का यह बयान बेरोजगारी और उद्योग पलायन पर सीधा हमला माना जा रहा है।
रील क्रिएटर्स बनाम रील दर्शक — बहस का दूसरा पहलू
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में रील क्रिएटर्स की तारीफ की।
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के जरिए कई युवा अच्छी कमाई कर रहे हैं और आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
वहीं राहुल गांधी ने रील देखने वालों पर फोकस किया।
उन्होंने कहा कि रोजाना 6-7 घंटे रील देखने से युवाओं की पढ़ाई और ध्यान दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
गौरतलब है कि रील बनाने वालों की संख्या कम है, जबकि देखने वालों की संख्या लाखों में है — और यहीं से यह बहस शुरू हुई।
शोध क्या कहता है?
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन (NLM) की एक रिपोर्ट के अनुसार,
अत्यधिक इंटरनेट इस्तेमाल से युवाओं में आत्म-नियंत्रण घटता है और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
रिपोर्ट के मुताबिक —
- सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने से संज्ञानात्मक क्षमता कम होती है।
- लगातार स्क्रीन टाइम से नींद की गुणवत्ता घटती है और
- छात्रों की एकाग्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
डॉक्टर सलाह देते हैं कि युवाओं को अपने डिजिटल टाइम को सीमित करना चाहिए, ताकि इसके मानसिक और शारीरिक नुकसान को रोका जा सके।
निष्कर्ष — “डेटा सस्ता हुआ, लेकिन बहस महंगी पड़ गई”
बिहार चुनाव में अब रैलियों से ज़्यादा चर्चा हो रही है — रील्स और रियलिटी की।
एक ओर मोदी सरकार डिजिटल इंडिया और किफायती डेटा को अपनी उपलब्धि बता रही है,
तो दूसरी ओर राहुल गांधी और प्रशांत किशोर इसे बेरोजगारी और सामाजिक असंतुलन से जोड़ रहे हैं।
अब देखना होगा कि बिहार का युवा वोटर डेटा से जुड़ेगा या रोजगार से?

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