उज्जैन का भूखी माता मंदिर, रहस्य और आस्था

अश्विन मास की नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू हो चुकी है। पंचमी तिथि पर धर्मनगरी उज्जैन में भक्तों का उत्साह चरम पर है। शहर के मंदिरों और पंडालों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा हो रही है। हर ओर भक्ति के स्वर और मंत्रोच्चार गूंज रहे हैं।
इसी उज्जैन में स्थित है एक ऐसा प्राचीन मंदिर, जिसके रहस्य और परंपराएं हर किसी को हैरान कर देती हैं। यह है क्षिप्रा नदी किनारे स्थित भूखी माता का मंदिर।
कहां स्थित है यह मंदिर?
भूखी माता का मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर, कर्कराज मंदिर के पास स्थित है।
पुजारी विकास चौहान बताते हैं कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने देवी से यहां विराजमान होने का आग्रह किया था।
समय के साथ मंदिर के दो रूप बने—
- एक नदी किनारे
- दूसरा ऊंची चट्टान पर
किंवदंती है कि देवी ने स्वयं पुजारी को सपने में दर्शन देकर ऊंचे स्थान पर नया मंदिर बनाने का आदेश दिया, ताकि भक्त हर परिस्थिति में दर्शन कर सकें।
“भूखी माता” नाम की कहानी
मंदिर में दो प्राचीन मूर्तियां हैं—देवी भूखी और देवी भुवनेश्वरी।
कहानी के अनुसार, पुराने समय में उज्जैन में देवी को प्रसन्न करने के लिए हर दिन एक युवक को राजा बनाकर उसकी बलि दी जाती थी। यह प्रथा “नरबलि” के नाम से जानी गई।
सम्राट विक्रमादित्य इस परंपरा से व्याकुल हुए और एक उपाय निकाला। उन्होंने मिठाई से बना पुतला राजा की तरह सजाकर सिंहासन पर बैठाया और पूरे नगर में स्वादिष्ट भोजन तैयार करवाया।
जब देवी भोजन करने आईं, तो बोलीं—
“जब खाना इतना स्वादिष्ट है तो राजा कितना मीठा होगा।”
अन्य देवियों ने उन्हें “भूखी” कहकर पुकारा और तभी से यह नाम प्रसिद्ध हो गया।
मिष्ठान से समाप्त हुई नरबलि
किंवदंती कहती है कि देवी ने पुतले को राजा समझकर उसका अंगूठा खा लिया और प्रसन्न हो गईं।
उन्होंने वरदान मांगने को कहा। सम्राट ने निवेदन किया कि—
- मनुष्य की बलि बंद हो
- देवी क्षिप्रा तट पर स्थायी रूप से विराजमान हों
देवी ने शर्त रखी कि उनकी भूख शांत करने के लिए भक्त पशु और पक्षी की बलि देंगे।
तभी से नरबलि की जगह पशुबलि की परंपरा शुरू हुई।
आज भी जारी है पशुबलि की परंपरा
आज भी मंदिर में भक्त मनोकामना पूर्ण होने पर बकरे और मुर्गे की बलि चढ़ाते हैं।
- बलि के समय पशु या पक्षी का सिर देवी को अर्पित किया जाता है।
- बाकी हिस्सा भक्त प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
हालांकि कुछ भक्त प्रतीकात्मक बलि देते हैं—सिर्फ कान पर हल्का कट लगाकर पशु को छोड़ देते हैं।
नवरात्रि पर खास आकर्षण
नवरात्रि के दौरान मंदिर में भव्य आयोजन होते हैं—
- सुबह से रात तक भजन-कीर्तन और देवी के जयकारे
- मंदिर परिसर में रंग-बिरंगी सजावट और दीपों की जगमगाहट
- ढोल-नगाड़ों और घंटियों की गूंज से वातावरण पूरी तरह पावन हो उठता है।
आस्था और रहस्य का संगम
भूखी माता का यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की प्राचीन मान्यताओं और उनके बदलाव का जीवंत प्रतीक है।
- सम्राट विक्रमादित्य की बुद्धिमानी
- देवी की कृपा
दोनों ने मिलकर एक भयावह प्रथा को समाप्त कर समाज को नई दिशा दी।
आज भी यहां आने वाला हर श्रद्धालु उस बदलाव को याद करता है, जिसने उज्जैन की धार्मिक संस्कृति को नया स्वरूप दिया।
नवरात्रि के पावन अवसर पर भूखी माता मंदिर हर आगंतुक को आस्था, रहस्य और अद्भुत परंपराओं का ऐसा अनुभव देता है, जिसे वह जीवनभर नहीं भूल पाता।

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