ऑपरेशन सिंदूर,एक सोच-समझकर चलाया गया अभियान

जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने हाल ही में आई किताब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के विमोचन के दौरान बताया कि यह ऑपरेशन सिर्फ 88 घंटे का नहीं था।
यह एक लंबा, रणनीतिक और प्लानबद्ध अभियान था।

किताब का विमोचन

नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में
लेखक: लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) केजेएस ढिल्लों
किताब में पूरी कहानी है, जिसमें इस साल की शुरुआत में नियंत्रण रेखा (LoC) के पार भारत की सैन्य कार्रवाई का ब्योरा शामिल है।

जनरल द्विवेदी की मुख्य बातें

  • युद्ध की अवधि:
    “आप सोच सकते हैं कि यह युद्ध 10 मई को खत्म हो गया, लेकिन यह लंबे समय तक चला।”
  • निर्णय प्रक्रिया:
    कब शुरू करना था, कब रोकना था, कहाँ हमला करना था और किन संसाधनों का उपयोग करना था — सभी महत्वपूर्ण फैसले बड़े ध्यान से लिए गए।
  • पूर्व सैनिकों से सुझाव:
    अप्रैल में कई पूर्व सैनिकों से सलाह ली गई, जिनसे बहुत उपयोगी सुझाव मिले।
  • सैनिकों का समर्पण:
    भारतीय सेना ने एकजुटता के साथ काम किया। हर सैनिक को अपने आदेश स्पष्ट रूप से समझ आए थे और वे योजना के अनुसार काम कर रहे थे।

एलओसी पर स्थिति अभी भी गंभीर

  • घुसपैठ की कोशिशें लगातार जारी।
  • राज्य-समर्थित आतंकवाद अब भी सक्रिय।
  • कई आतंकवादी मारे जा चुके हैं, लेकिन कई बच गए।

ऑपरेशन सिंदूर क्या था?

  • 7 मई की सुबह शुरू हुआ।
  • इसका उद्देश्य था:
    22 अप्रैल के पहलगाम हमले का जवाब देना।
    पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना।
  • पाकिस्तान ने ड्रोन हमले किए, लेकिन भारतीय सेना ने उन्हें रोक दिया।
  • 10 मई को पाकिस्तान से कॉल आने के बाद ऑपरेशन रोक दिया गया।

निष्कर्ष

ऑपरेशन सिंदूर कोई साधारण हमला नहीं था, बल्कि यह पूरी तरह से सोची-समझी योजना के तहत किया गया एक सफल अभियान था।
भारत की सुरक्षा व्यवस्था ने इस मिशन में सामूहिक तालमेल और रणनीति का बेहतरीन प्रदर्शन किया।

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