सनातन का विरोध, सोची समझी साजिश !
राजनैतिक स्वार्थ और सस्ते प्रचार के लिये उदारवादी हिंदुत्व को उग्रता के लिये उकसाना बंद हो कुछ साल पहले भारत में ‘असहिष्णुता’ को लेकर एक बहस शुरू हुई थी, जो आज भी जारी है। ‘असहिष्णु’ अर्थात सहन न करने वाले। कथित रूप से बुद्धिजीवी माने जाने वाले कुछ चेहरों, संस्थाओं और तुष्टीकरण के लिये जमीन तलाशने वाले राजनेताओं की ओर से यह तथ्यहीन आरोप सनातन धर्म को मानने वाले देश के अधिसंख्य हिंदु समुदाय पर लगाया गया था। जबकि भारत की संस्कृति में आदिकाल से सहिष्णुता, प्रेम और धैर्य का समावेश रहा है।
ब्रिटिश हुकुमत से स्वतन्त्रता के बाद भारत से अलग होकर पाकिस्तान धर्म के आधार पर एक इस्लामिक राष्ट्र बना लेकिन भारत ने अपने हिंदु अधिसंख्य नागरिक होते हुये भी ‘धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र’ के रूप में सभी धर्म-सम्प्रदाय को स्थान और सम्मान दिया। क्या यह हिंदु बहुसंख्यक भारतीय संस्कृति की ‘सहिष्णुता’ नहीं थी ? हिंदु संस्कृति के मूल, सनातन धर्म ने ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का संदेश पूरे विश्व को दिया।यह एक उद्घोष ही ऐसे सभी आरोपों को निराधार साबित करने के लिये पर्याप्त है। इसके बावजूद आज भी सनातन धर्म, हिंदु और हिंदुत्व पर जानबूझकर लगातार हमले किये जा रहे हैं।
आज हिंदु से हिंदुत्व को अलग बताकर वोट बैंक तलाशने का प्रयोग किया जाता है। कभी हिंदुत्व के आधार ‘सनातन धर्म’ को बीमारी बताया जा रहा है। कहीं समाजवाद के नाम पर सनातन धर्म के धार्मिक ग्रन्थों को अपमानित कर, जलाया जाता है। इन घटनाओं को जोड़कर देखें तो इसके पीछे सनातन, हिंदु और हिंदुत्व की अलग-अलग व्याख्या करके, राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति करने वाले उद्देश्य आसानी से दिख जायेंगे।
तुष्टिकरण की राजनीति और सस्ते प्रचार के लिये देश के अन्दर ही कुछ स्वंभु राजनेता बिना किसी भय के सनातन धर्म के करोड़ों लोगों की आस्था पर हमले करते हैं और सुरक्षित रहते हैं।यह सनातन धर्म की सहिष्णुता और उदारता नहीं तो क्या है ? यह उकसाने वाले कृत्य किसी को भी आहत कर प्रतिक्रिया के लिये प्रेरित कर सकते हैं, तब इसे भगवा आतंकवाद का नाम देकर दुष्प्रचारित करने वाले कथित बुद्धिजीवी लाॅबी भी तैयार है। क्या यह सनातन धर्म को बदनाम कर विभाजित करने की सोची समझी साजिश नहीं कही जाए ?
ऐसे समय में जब देश और देश के बाहर दूसरे मजहबों की हिंसक विचारधारा और मजहबी किताब पर सवाल उठाने या आलोचना पर हिंसा और हत्याओं के तमाम उदाहरण मौजूद हों, तब बिना भय के सनातन धर्म और इसे मानने वाले हिंदु समुदाय को मनमाफिक तरीके से अपमानित किया जा रहा है ।क्योंकि हिंदु धार्मिक आधार पर कट्टरता से परहेज करते हैं। उनका सनातन धर्म मानव जीवन की रक्षा करने तथा युद्ध को अंतिम विकल्प मानने का उपदेश करता है। इस उदारता और धैर्य की कितनी परीक्षा ली जायेगी ?
दक्षिण भारत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र और सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने जिस तरीके से सनातन धर्म की तुलना एड्स, डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारी बताते हुये इसे खत्म करने का बयान दिया है वह देश के करोड़ों सनातनियों की भावनाओं को सीधे-सीधे अपमानित करता है । राम-कृष्ण की जन्मभूमि उत्तर प्रदेश में ही समाजवादी पार्टी के स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे अवसरवादी नेता रामायण-गीता का अपमान कर प्रचार पा रहे हैं । वे हिंदु धर्म को नीचा और धोखा बताते हैं और उसी की उदारता से पार्टी में बने रहते हैं।बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री रामचरित्र मानस को पोटेशियम सानाइड जैसा जहर बताकर करोड़ों रामभक्तों की आस्था को सीधे चुनौति दे रहे हैं।सस्ते प्रचार की लालसा वाले ये लोग जानते हैं कि अन्य मजहबी लोगों की तरह हिंदु समाज हिंसक विरोध नहीं करता है ।
सवाल ये भी है कि करोड़ों सनातनी हिंदुओं के बीच रहकर भी बिना भय के ऐसे बयान जिस स्वतंत्रता से दिये जा रहे है, क्या वह स्वतन्त्रता संविधान ने दी है ? अगर ऐेसा होता तो मुस्लिम धर्मग्रन्थ पर सवाल करने वाली नुपुर शर्मा आज हत्या की आंशका से गुमनामी का जीवन न जी रही होतीं।सोशल मीडिया पर नुपुर का केवल समर्थन करने पर ही राजस्थान में एक दर्जी का बीच बाजार सर कलम न कर दिया जाता ।
आज देश में किसी अन्य धर्म पर छोटी सी टिप्पणी करने पर किसी भी राज्य में दर्जनों मुकदमे दर्ज हो जाते हैं लेकिन ‘सर तन से जुदा’ के उन्मादी नारे लगाने, हिंदु देवी-देवताओं को अपमानित करने के बावजूद भी मजहबी भीड़ को किसी कानूनी कार्यवाही का डर नहीं रहता।अभिव्यक्ति की यह स्वतन्त्रता क्या केवल सनातन को ही निशाना बनाने के लिये दी गयी है? क्या यह एक उदारवादी विचारधारा को उग्र विचारधारा में परिवर्तित करने के प्रयास नहीं हैं ?
अगर ऐसे माहोल में हिंदु संगठन सनातन धर्म और अपने अधिकारों की रक्षा के लिये अपने ही देश में संवैधानिक रूप से भी विरोध स्वरूप अपनी आवाज उठाते हैं तो उन पर असहिष्णुता और भगवा आतंक के आरोप मढ़ दिये जाते हैं । दोहरे मापदण्डों और बेशर्मी की भी कोई सीमा होती है लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे सनातन का विरोध करने वालों के लिये इसकी कोई सीमा नहीं रह गयी है ।
सनातन और हिंदु विरोधी बयान सीधे तौर पर भारत की बड़ी जनसंख्या को भ्रमित कर तथा उकसाकर हिंदुत्व हो नहीं बल्कि देश को कमजोर करने सोची समझी साजिश के तौर पर देखे जाने चाहिये । यह याद रखने वाली बात है कि सनातन धर्म भारत की आत्मा है, हिंदुत्व का आधार है । इसके बिना भारत के विकास की कल्पना नहीं हो सकती।
ऐसे में जब केन्द्र में सनातन का सम्मान करने वाली सरकार मौजूद हैं तब सनातन धर्म के हित के लिये ‘सनातन बोर्ड’ का गठन किया जाना चाहिये। भारत में हिंदु समुदाय के धार्मिक भावनाओं की रक्षा के लिए हिंदु देवी देवताओं के अपमान पर ‘ईशनिंदा’ कानून को लागू करना चाहिये।
प्रदेश सरकारें भी यह तय करें कि बहुसंख्यक हिंदु समुदाय की धार्मिक भावनाओं को अपमानति करने का अधिकार किसी को न हो। देश में स्थिरता और शांति के लिये उदारवादी सनातन धर्म से जुड़े लोगों को उग्र विचारधारा के लिये मजबूर करने वाली साजिशों को रोका जाना बहुत आवश्यक है।
समाजसेवी विजय शर्मा
सचिव- मेरा भारत-मेरा स्वाभिमान
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