ज्वालाजी का वो मंदिर जहां जाकर अकबर भी हो गया था भक्त
Jwala Ji Mandir: चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. इस बार नवरात्रि का व्रत बुधवार, 22 मार्च 2023 यानी कल से रखा जाएगा. साथ ही कल से हिंदू नव संवत्सर 2080 भी शुरू हो जाएगा. नवरात्रि में पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-उपासना की जाती है. साथ ही हर साल नवरात्रि पर माता रानी का आगमन विशेष वाहन पर होता है, जिसका महत्व बेहद खास है.
संपूर्ण देवी-देवताओं का पृथ्वी पर वास
मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय और अन्य देवी-देवताओं के साथ पृथ्वीलोक पर आती हैं. नवरात्रि के पहले दिन यानी कल माता की समक्ष अखंड ज्योति स्थापित की जाएगी. नवरात्रि के इस शुभ समय में मां दुर्गा के मंदिरों में भी भक्तों का तांता लग जाता हैं, उनमें माता के शक्तिपीठ सबसे महत्वपूर्ण हैं.
सबसे महत्वपूर्ण है ज्वालामुखी मंदिर
पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारत के अलग-अलग स्थानों पर स्थापित हैं. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है तो देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वहीं तन्त्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं. देवी पुराण के मुताबिक 51 शक्तिपीठ में से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण ज्वालामुखी मंदिर है.
हिमाचल में स्थित है ये मंदिर
ज्वालाजी मंदिर को ज्वालामुखी या ज्वाला देवी के नाम से भी जाना जाता है. ज्वालाजी मंदिर (Jwala Ji Mandir) हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी. और धर्मशाला से 56 किमी. की दूरी पर स्थित है. ज्वालाजी मंदिर हिंदू देवी “ज्वालामुखी” को समर्पित है. कांगड़ा की घाटियों में, ज्वाला देवी मंदिर की नौ अनन्त ज्वालाएं जलती हैं, जो पूरे भारत के हिंदू तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती हैं. मंदिर की नौ अनन्त ज्वालाओं में उनके निवास के कारण, उन्हें ज्वलंत देवी के रूप में भी जाना जाता है. यह एक ऐसा अद्भुत मंदिर है जिसमें भगवान की कोई मूर्ति नहीं है. ऐसा माना जाता है कि देवी मंदिर की पवित्र लपटों में रहती हैं, जो बाहर से बिना ईंधन के दिन-रात चमत्कारिक रूप से जलती हैं.
हर मनोकामना होती है पूरी
इन ज्योतियों के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और आत्मिक शांति के साथ-साथ पाप से मुक्ति मिलती है. अलौकिक ज्योतियां साक्षात मां का स्वरूप हैं जो पानी में भी नहीं बुझती. ये ज्वाला कालांतर से लगातार जल रही हैं. इस मंदिर में मां के सम्मान में एक दो नहीं बल्कि दिन में पांच आरतियां होती हैं. मां के इस अलौकिक मंदिर से जुड़ी कई कहानियां हैं. जो इसके प्राचीन से प्राचीन और ऐतिहासिक होने का गवाह हैं. ज्वालामुखी में माता की जिव्हा गिरी थी. जिव्हा में ही अग्नि तत्व बताया गया है, जिससे यहां पर बिना तेल, घी के दिव्य ज्योतियां जलती रहती हैं. मंदिर के गर्व गृह में सात पवित्र ज्योतियां हजारों सालों से भक्तों की आस्था का केंद्र बनी हुई हैं.
मंदिर के पीछे छीपी है रहस्य की काहनी
ज्वाला देवी मंदिर (Jwala Ji Mandir) के रहस्य के पीछे की कहानी यह है कि पवित्र देवी नीली लॉ के रूप में खुद प्रकट हुईं थीं और यह देवी का चमत्कार ही है कि पानी के संपर्क में आने पर भी ये लॉ नहीं बुझती. यह मंदिर गर्भगृह में स्थित है. यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और हिंदू भक्तों का मानना है कि ज्वाला देवी मंदिर की तीर्थयात्रा उनके सभी कष्टों का अंत कर देती है. यह माना जाता है कि देवी सती की जीभ इस स्थान पर गिरी थी जब उन्होंने खुद का बलिदान दिया था. बाद में राजा भूमि चंद कटोच ने इस भव्य मंदिर और नौ ज्वालाओं का निर्माण किया. ज्वाला देवी दुर्गा के नौ रूपों – महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्य वासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजनी देवी का प्रतिनिधित्व करती हैं.
पौराणिक कथा भी है प्रचलित
इस मंदिर (Jwala Ji Mandir) के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है. कथा यह है कि, कई हजार साल पहले एक चरवाहे ने पाया कि उसकी एक गाय का दूध नहीं बचता था. एक दिन उसने गाय का पीछा किया और वहां एक छोटी सी लड़की को देखा, जो गाय का पूरा दूध पी जाती थी. उन्होंने राजा भूमि चंद को इसकी सूचना दी, जिन्होंने अपने सैनिकों को पवित्र स्थान का पता लगाने के लिए जंगल में भेजा, जहां मा सती की जीभ गिरी थी क्योंकि उनका मानना था कि छोटी लड़की किसी तरह देवी का प्रतिनिधित्व करती थी. कुछ वर्षों के बाद, पहाड़ में आग की लपटें पाई गईं और राजा ने इसके चारों ओर एक मंदिर बनाया. यह भी कल्पित है कि पांडवों ने इस मंदिर का दौरा किया और इसका जीर्णोद्धार किया. लोक गीत “पंजन पंजवन पंडवन तेरा भवन बान्या” इस विश्वास की गवाही देता है.
अकबर ने रखी थी ये शर्त
मान्यता है कि राजा अकबर ने मां ज्वालाजी के अनन्य भक्त ध्यानु की श्रद्धा और आस्था की परीक्षा उस समय ली, जब ध्यानु माता के दरबार में अपने साथियों के साथ शीश नवाने के लिए आगरा से ज्वालामुखी की तरफ बढ़ रहे थे. अकबर ने बिना तेल घी के जल रही ज्योतियों को पाखंड बताने के बाद यह शर्त रखी कि वो ध्यानु के घोड़े का सिर धड़ से अलग करेगा तो ध्यानु की आराध्य मां इसे पुनः लगा सकती है?
अकबर ने करवा दिया था सिर कलम
ध्यानु भक्त ने हां का जबाब देने के बाद अकबर ने घोड़े का सिर कलम करवा दिया था जो ज्वालाजी (Jwala Ji Mandir) की शक्ति से पुनः लग गया. ध्यानु भक्त ने भी मां के आगे अपना सिर धड़ से अलग कर लिया था. लेकिन माता की अदभुत शक्ति ने पुनः सिर धड़ से जोड़ दिया. माना जाता है कि अकबर ने इस प्रयास के बाद पवित्र ज्योतियों के स्थान पर लोहे के कड़े लगवा दिए, ताकि ज्योतियां बुझ सकें. ज्योतियां बुझाने के लिए ज्वालामुखी के साथ लगते जंगल से पानी की नहर भी ज्योतियों पर डाली. लेकिन माता के चमत्कार से पानी पर भी पवित्र ज्योतियां जल उठी थीं.