उत्तराखंड की बारिश ने ब्रिटिश कालीन पुलों को किया प्रभावित

15 और 16 सितंबर को उत्तराखंड में हुई भारी बारिश और आपदा ने शहर की सड़कों और मकानों के साथ-साथ 185 साल पुराने ब्रिटिश कालीन निर्माणों को भी नुकसान पहुंचाया। मालदेवता, सहस्त्रधारा और मसूरी के आसपास के इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
पुराने बेली ब्रिज और पुल क्षतिग्रस्त हो गए। कई जगह प्रशासन ने त्वरित मरम्मत कर यातायात बहाल किया, लेकिन कुछ ऐतिहासिक संरचनाएं अब भी पुनर्निर्माण की प्रतीक्षा में हैं।
अंग्रेजों की बनाई ऐतिहासिक नहर भी आपदा की चपेट में
टिहरी गढ़वाल जिले की सीमा पर स्थित शिवपुर कुमाल्डा गांव में 1840 के दशक में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई नहर आपदा में गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई।
यह नहर कभी देहरादून की “लाइफलाइन” मानी जाती थी, जो सिंचाई और पेयजल का मुख्य स्रोत थी।
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, उस समय सीमित संसाधनों के बावजूद नहर पूरे क्षेत्र की कृषि को जीवन देती थी। आज भी मालदेवता और रायपुर के किसान इस नहर पर निर्भर हैं।
लेकिन सितंबर में आई आपदा के दौरान बांदल नदी पर बनी नहर का बड़ा हिस्सा बह गया, जिससे पानी का प्रवाह रुक गया और किसानों को सिंचाई में गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
सिंचाई और आवागमन पर असर
नहर टूटने से खेत सूखने लगे हैं और सिंचाई ठप हो गई।
स्थानीय निवासी शमशेर सिंह पुंडीर बताते हैं कि नहर का तकनीकी हिस्सा एस्केप चैनल या एक्वाडक्ट कहलाता था। इसके ऊपर से लोग और पानी बहता था।
अब यह मार्ग बंद हो गया है और गांव का मुख्य रास्ता भी टूट चुका है। बुजुर्ग महिलाएं और बच्चे अब लंबा और कठिन रास्ता तय करने को मजबूर हैं।
विभागों के बीच जिम्मेदारी का टकराव
स्थानीय लोग बताते हैं कि सिंचाई विभाग ने नहर के क्षतिग्रस्त हिस्से का निरीक्षण किया, लेकिन पुनर्निर्माण पर ठोस कदम नहीं उठाए।
विभाग का कहना है कि वह केवल नहर की मरम्मत करेगा, जबकि पुल और रास्ता बनाने का अधिकार उनके पास नहीं है।
ग्रामीणों की नाराजगी का कारण यही है कि “अंग्रेजों के समय नहर बनाते समय हमारी जरूरतों का ध्यान रखा गया था, लेकिन आज हमारी अपनी सरकार हमारी बात नहीं सुन रही।”
ग्रामीणों की मांग: पुराने स्वरूप में पुनर्निर्माण
गांववासियों ने प्रशासन से नहर और पुल का पुनर्निर्माण पुराने स्वरूप में करने की मांग की है।
उनका कहना है कि यह सिर्फ नहर नहीं, बल्कि गांव की जीवनरेखा और ऐतिहासिक धरोहर है।
स्थानीय लोग मानते हैं कि सरकार को ऐतिहासिक संरचनाओं को सांस्कृतिक विरासत के रूप में संरक्षित करना चाहिए। ये संरचनाएं ब्रिटिश काल की इंजीनियरिंग और स्थानीय जरूरतों का जीवंत उदाहरण हैं।
सरकार के सामने चुनौती
देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में हर साल भारी बारिश और आपदा से पुरानी संरचनाएं खतरे में आती हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार को आपदा-प्रभावित विरासत संरचनाओं के पुनर्निर्माण के लिए अलग नीति बनानी चाहिए।
अभी तक प्रशासन ने कुछ क्षतिग्रस्त पुलों को बहाल किया है, लेकिन शिवपुर कुमाल्डा और आसपास के इलाके अभी भी काम का इंतजार कर रहे हैं।
ग्रामीणों की निगाहें अब सरकार पर हैं कि क्या वह “अंग्रेजों की सोच से आगे बढ़कर जनता की जरूरतों को समझ पाएगी।”

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