उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ संपन्न हुआ आस्था का पर्व

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा आज उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया।
देशभर के घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी रही।

लाखों व्रती महिलाओं ने नदियों, तालाबों और झीलों के किनारे पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया, और परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की लंबी आयु व समाज में खुशहाली की कामना की।
चार दिनों तक चला यह पर्व पूरे देश में भक्ति, अनुशासन और श्रद्धा का अनोखा माहौल लेकर आया।

उगते सूर्य को अर्पित हुआ ‘उषा अर्घ्य’

छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
सुबह होते ही नदियों और कृत्रिम तालाबों के किनारे भक्ति और आस्था का अद्भुत नज़ारा देखने को मिला।

व्रती महिलाएं और पुरुष अपने परिवार के साथ फल, ठेकुआ, नारियल, गन्ना और प्रसाद से सजे बर्तनों के साथ जल में खड़े थे।
जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई दी, पूरा वातावरण छठ मैया के गीतों और जयकारों से गूंज उठा।
सभी श्रद्धालुओं ने जल और दूध से “उषा अर्घ्य” अर्पित किया और सूर्य देव की पूजा की।

सूर्योदय के साथ ही भक्ति और उत्साह की लहर चारों ओर दौड़ गई। दूर-दूर से आए लोग इस पवित्र क्षण के साक्षी बने।

36 घंटे का निर्जला व्रत हुआ पूरा

छठ पूजा को अनुशासन और पवित्रता का प्रतीक पर्व कहा जाता है।
खरना के बाद शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत (बिना अन्न-जल के) आज उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूर्ण हुआ।

व्रती महिलाएं अब अर्घ्य के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत का समापन करेंगी।
यह पर्व आत्म-संयम, स्वच्छता और परिवार के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

छठ पूजा का महत्व — प्रकृति और मातृत्व के प्रति कृतज्ञता

छठ महापर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति और जीवन के प्रति धन्यवाद ज्ञापन का प्रतीक है।
इस दिन सूर्य देव (ऊर्जा और जीवन के स्रोत) तथा छठी मैया (संतान की रक्षा करने वाली देवी) की विशेष पूजा की जाती है।

उगते और डूबते सूर्य दोनों को अर्घ्य देने की परंपरा यह संदेश देती है कि —
जीवन के हर चरण, हर उतार-चढ़ाव का सम्मान जरूरी है।

छठ पूजा करोड़ों लोगों की अटूट आस्था, सांस्कृतिक एकता और पारिवारिक प्रेम की झलक है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि श्रद्धा, संयम और कृतज्ञता ही सच्चे जीवन की शक्ति हैं।

निष्कर्ष

छठ पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और सामूहिक संस्कृति का प्रतीक है।
सूर्य की पहली किरण के साथ जो श्रद्धा का प्रकाश फैलता है,
वह हर हृदय में आशा, ऊर्जा और सकारात्मकता भर देता है।

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