अब गाड़ी और रैलियों में जाति नहीं लिखी जा सकेगी

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक अहम फैसला लिया है। अब:

  • कोई भी अपनी गाड़ी पर जाति का नाम नहीं लिख सकेगा
  • जाति के नाम से राजनीतिक रैलियां नहीं की जा सकेंगी
  • गांवों के बाहर लगे जाति वाले बोर्ड हटाने होंगे

सरकार का कहना है कि यह कदम समाज में बराबरी और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है।

ब्राह्मण और क्षत्रिय नेता खुश

  • क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष महेंद्र सिंह तंवर ने कहा:
    “भगवान राम और महाराणा प्रताप ने कभी जाति की बात नहीं की। गाड़ी पर जाति लिख देने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। काम से ही सम्मान मिलता है।”
  • ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष पीतांबर शर्मा ने कहा:
    “हम हमेशा से इस प्रथा के खिलाफ रहे हैं। अगर कोई गाड़ी पर ‘ब्राह्मण’ लिखेगा तो हम उसे हटाने के लिए कहेंगे।”

यादव संगठन का विरोध

यादव महासभा के नेता कप्तान सिंह यादव ने इस आदेश का विरोध किया। उनका कहना है कि:

  • यह फैसला राजनीतिक है
  • समाजवादी पार्टी की ताकत को रोकने के लिए लाया गया है
  • “गाड़ियों पर जाति लिखना हमारी पुरानी आदत है। इसे रोकना आसान नहीं होगा।”

गुर्जर और जाट संगठन की चिंता

  • गुर्जर महासभा के अध्यक्ष दिनेश सिंह गुर्जर ने कहा:
    “आदेश अच्छा है, लेकिन इसे लागू करने से पहले सरकार को सभी संगठनों से बात करनी चाहिए थी। शायद यह आदेश सब पर बराबर लागू न हो।”
  • जाट महासभा के महासचिव जयवीर सिंह ने कहा:
    “जब सभी जातियों पर रोक लगाई गई है तो अनुसूचित जाति और जनजाति को छूट क्यों दी गई है? मुझे गर्व है कि मैं जाट हूं। अपनी जाति बताने में बुराई नहीं है।”

सरकार का मकसद

सरकार ने स्पष्ट किया कि यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के हाल के फैसले पर आधारित है।
मुख्य उद्देश्य:

  • जाति के आधार पर भेदभाव को खत्म करना
  • समाज में बराबरी और भाईचारा बढ़ाना

पश्चिमी यूपी में इसका असर

  • गाड़ियों और गाँवों के बाहर जाति लिखना यहाँ आम है
  • खासकर जाट, गुर्जर, यादव, ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदायों में यह प्रथा पुरानी है
  • सरकार का कहना है कि यह आदेश समाज को जोड़ने के लिए है

हालांकि, इस फैसले पर मतभेद भी हैं:

  • ब्राह्मण और क्षत्रिय इसे सही मान रहे हैं
  • यादव, जाट और गुर्जर इसे राजनीतिक फैसला मानते हैं

निष्कर्ष:
यूपी सरकार का यह कदम समाज में बराबरी और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए है।
हालांकि, इसे लागू करना और लोगों की पुरानी आदतों को बदलना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।

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