“सेना पर भरोसा, लेकिन नेतृत्व पर सवाल – कांग्रेस का वार!”

निशान-ए-पाकिस्तान का असली हकदार कौन?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में निर्दोष नागरिकों की मौत के बाद भारत सरकार और सेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम का एक सटीक और आक्रामक मिशन शुरू किया। इस ऑपरेशन का मकसद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद करना था। सरकार और सेना ने इसे पूरी तरह सफल बताया, यह दावा किया गया कि कई आतंकी लॉन्चपैड तबाह कर दिए गए और भारत की रणनीतिक क्षमता एक बार फिर दुनिया के सामने साबित हुई। इस ऑपरेशन को लेकर देश भर में सराहना हुई, लेकिन विपक्ष की ओर से सवाल भी उठने लगे।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार से इस ऑपरेशन से जुड़ी कई अहम जानकारियों को लेकर जवाब मांगा। उनका कहना था कि अगर यह ऑपरेशन इतना सफल था, तो फिर पाकिस्तान को इसकी जानकारी पहले क्यों दी गई? उन्होंने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर पर आरोप लगाया कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह माना कि पाकिस्तान को बताया गया था कि हमला केवल आतंकी ठिकानों पर होगा। राहुल ने यह भी पूछा कि इस हमले में भारत ने कितने एयरक्राफ्ट खोए? क्या आतंकियों को पहले से भनक लग गई थी, इस वजह से वह भाग निकले? उन्होंने इसे एक ‘सिर्फ चूक’ नहीं, बल्कि एक ‘अपराध’ बताया और कहा कि देश को सच्चाई जानने का हक है।

राहुल गांधी के इन बयानों पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी। भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर एक कार्टून पोस्ट करते हुए राहुल गांधी पर तंज कसा और कहा कि वह “पाकिस्तान की भाषा” बोल रहे हैं। उन्होंने पूछा कि राहुल ने प्रधानमंत्री या सेना की सफलता की तारीफ क्यों नहीं की? इसके बजाय वह बार-बार नुकसान को लेकर सवाल कर रहे हैं। उन्होंने राहुल गांधी के लिए व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि उन्हें “निशान-ए-पाकिस्तान” पुरस्कार ही मिल जाना चाहिए।

इसके जवाब में कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भाजपा पर जमकर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि भाजपा जैसे गंभीर मौके पर भी राजनीतिक मज़ाक और ‘कार्टूनगिरी’ कर रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा को जब भी मौका मिलता है, वह विपक्ष की देशभक्ति पर सवाल उठाने लगती है। पवन खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस को भारतीय सेना पर पूरा भरोसा है, लेकिन मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व पर नहीं। उन्होंने यह भी तंज कसा कि अगर किसी को ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ मिलना चाहिए, तो वह नेता हैं जो बिना बुलाए नवाज़ शरीफ़ की बिरयानी खाने पाकिस्तान चले गए थे। उनका इशारा स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस यात्रा की ओर था, जब वे अचानक पाकिस्तान पहुँच गए थे।

पवन खेड़ा ने यह भी याद दिलाया कि मोरारजी देसाई अब तक एकमात्र भारतीय नेता हैं जिन्हें पाकिस्तान द्वारा निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान मिला है। उन्होंने कहा कि अब भाजपा के कुछ नेताओं का व्यवहार भी ऐसा है कि वे इस सम्मान के ‘हकदार’ बनते जा रहे हैं। उन्होंने विदेश मंत्री जयशंकर पर भी सवाल उठाए कि अमेरिका से उनके रिश्तों के चलते क्या पाकिस्तान को जानबूझकर भरोसा दिलाया गया था कि भारत केवल आतंकियों पर ही हमला करेगा? उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि अब देखना यह है कि जयशंकर को किस देश से क्या सम्मान मिलता है।

सेना की ओर से 11 मई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई, जिसमें एयर मार्शल ए.के. भारती ने स्पष्ट किया कि भारत इस वक्त युद्ध जैसी स्थिति में है, और ऐसे में नुकसान होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सफल रहा है और भारत के सभी पायलट सुरक्षित लौट आए हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि ऑपरेशन से जुड़ी बारीक जानकारी फिलहाल साझा नहीं की जा सकती, ताकि कोई संवेदनशील जानकारी दुश्मनों के हाथ न लगे।

यह पूरा विवाद अब केवल एक सैन्य ऑपरेशन से जुड़ा मुद्दा नहीं रह गया है। यह एक बड़े राजनीतिक संघर्ष का रूप ले चुका है, जहां सरकार ‘रणनीतिक जीत’ की बात कर रही है, जबकि विपक्ष ‘जवाबदेही और पारदर्शिता’ की मांग कर रहा है। इस बहस में सेना को राजनीति से दूर रखने की बात कही जा रही है, लेकिन राजनीतिक दल एक-दूसरे पर ‘देशविरोधी’, ‘पाकिस्तानी समर्थक’, या ‘अवॉर्ड के हकदार’ जैसे आरोप लगा रहे हैं।

अब सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ऐसी राजनीतिक बयानबाजी होनी चाहिए? क्या विपक्ष को सवाल पूछने का अधिकार नहीं है, और क्या सरकार को जनता के प्रति ज्यादा पारदर्शिता नहीं रखनी चाहिए? यह विवाद आने वाले समय में और गहराता है या कोई संतुलन बनता है, यह देखना बाकी है।

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