लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल: वो 21 वर्षीय वीर

भारत की धरती ने हमेशा ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी।
उन्हीं में से एक हैं लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल, जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में अकेले दम पर 10 पाकिस्तानी टैंक ध्वस्त कर दिए।
उनकी यह गाथा अब बड़े पर्दे पर दिखाई जाएगी — अमिताभ बच्चन के नाती अगस्त्य नंदा उनकी भूमिका निभा रहे हैं, फिल्म का नाम है ‘इक्कीस’।
फिल्म ‘इक्कीस’ में जीवित होगी अरुण खेत्रपाल की कहानी
हाल ही में अगस्त्य नंदा का फर्स्ट लुक सामने आया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।
मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले बन रही यह फिल्म उस युवा सैनिक की सच्ची कहानी पर आधारित है जिसने सिर्फ 21 साल की उम्र में परम वीर चक्र हासिल किया।
कौन थे लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल?
- जन्म: 14 अक्टूबर 1950, महाराष्ट्र
- मूल: पंजाब के सरगोधा (अब पाकिस्तान) से
- परिवार:
- पिता लेफ्टिनेंट कर्नल एम.एल. खेत्रपाल (कोर ऑफ इंजीनियर्स)
- दादा और परदादा दोनों भारतीय सेना में सेवा दे चुके थे
- दादा प्रथम विश्व युद्ध के सैनिक थे, जबकि परदादा सिख खालसा सेना में थे
अरुण ने अपनी शुरुआती शिक्षा दिल्ली और सनावर से की।
उन्हें बचपन से ही अनुशासन और देशभक्ति की सीख मिली।
1967 में उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में प्रवेश लिया और आगे चलकर इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) से प्रशिक्षण प्राप्त किया।
बाद में उन्हें 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट में कमीशन मिला।
1971 का युद्ध: जब अरुण ने रचा इतिहास
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान,
अरुण खेत्रपाल को बसनतर नदी के मोर्चे पर तैनात किया गया।
जब पाकिस्तानी टैंकों ने हमला किया, उन्होंने अपने टैंक से अकेले मुकाबला किया।
अरुण के टैंक ने 10 दुश्मन टैंक तबाह कर दिए।
भले ही उनका खुद का टैंक जलने लगा था, लेकिन उन्होंने पीछे हटने से इनकार कर दिया।
जब उनके वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें पीछे हटने का आदेश दिया, उन्होंने कहा —
“नहीं सर, मैं टैंक को ऐसे नहीं छोड़ूंगा। मेरी मेन गन अब भी काम कर रही है और मैं इन्हें ज़रूर मार गिराऊंगा।”
ये उनके आखिरी शब्द थे।
16 दिसंबर 1971 को, लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
भारत के सबसे युवा परमवीर चक्र विजेता
उनकी असाधारण बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
अरुण खेत्रपाल आज भी भारत के सबसे युवा परमवीर चक्र विजेताओं में शामिल हैं।
उनकी गाथा भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।
‘इक्कीस’: युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा
फिल्म ‘इक्कीस’ का निर्देशन सृजित मुखर्जी ने किया है और यह मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले बनी है।
अगस्त्य नंदा का अभिनय और अरुण खेत्रपाल के आखिरी संवाद —
“मैं पीछे नहीं हटूंगा, मेरी गन अब भी चल रही है।”
— हर भारतीय के दिल में गर्व और देशभक्ति की लहर जगाते हैं।
निष्कर्ष
फिल्म ‘इक्कीस’ सिर्फ एक सैनिक की कहानी नहीं है —
यह भारत के युवा सैनिकों के साहस, जज़्बे और त्याग का प्रतीक है।
अरुण खेत्रपाल ने साबित किया कि देशभक्ति उम्र नहीं देखती, बस हिम्मत और जुनून चाहिए।

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