दिल्ली उच्च न्यायालय ने किसानों को दी राहत

दिल्ली उच्च न्यायालय ने यमुना चैनलाइजेशन परियोजना के तहत अपनी जमीन खो चुके कई किसानों के लिए राहत की खबर दी है। अदालत ने मुआवजे की राशि 89,600 रुपये प्रति बीघा से बढ़ाकर 2 लाख रुपये प्रति बीघा कर दी है।

साथ ही, अदालत ने सरकार को शेष राशि ब्याज सहित चुकाने का आदेश दिया। यह फैसला न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंजू की अध्यक्षता वाली पीठ ने 26 सितंबर को सुनाया और सोमवार को आधिकारिक रूप से जारी किया।

140 से अधिक अपीलों पर सुनाया गया फैसला

  • यह निर्णय 2006 में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर आया।
  • निचली अदालत ने मुआवजा पहले 27,344 रुपये से बढ़ाकर 89,600 रुपये प्रति बीघा किया था।
  • अधिग्रहित भूमि 1989 में यमुना के तटीकरण और दिल्ली के नियोजित विकास के लिए ली गई थी।
  • इस योजना के तहत 15 गांवों की लगभग 3,500 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की गई थी।

किसानों का तर्क: मुआवजा कम था

किसानों ने बताया कि:

  • कलेक्टर (LAC) ने भूमि का कम मूल्यांकन किया।
  • 1959 में कीमत 26,000 रुपये प्रति बीघा, और 1992 में 27,344 रुपये प्रति बीघा तय की गई।
  • पास के गांवों बहलोलपुर खादर और जसोला के भूस्वामियों को क्रमशः 2.5 लाख रुपये प्रति बीघा और 4,948 रुपये प्रति वर्ग गज मुआवजा मिला।
  • उनका कहना था कि उनकी जमीन की शहरी विकास की संभावनाएं समान थीं, इसलिए उन्हें भी उचित मुआवजा मिलना चाहिए।

सरकार और DDA का पक्ष

  • याचिकाकर्ताओं ने कहा कि किलोकरी भूमि का मूल्यांकन विकसित इलाकों जैसे महारानी बाग, कालिंदी कॉलोनी और जंगपुरा से किया जाना चाहिए था।
  • लेकिन डीडीए और केंद्र सरकार ने कहा कि भूमि सलाबी (बाढ़-प्रवण) है और इसका उपयोग कृषि या निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता।
  • इसलिए इसे पास के विकसित इलाकों से तुलना नहीं की जा सकती।

फैसला किसानों के पक्ष में

  • उच्च न्यायालय का यह फैसला किसानों के लिए बड़ी राहत और न्याय की जीत माना जा रहा है।
  • सरकार को मुआवजा ब्याज सहित भुगतान करना होगा।
  • यह निर्णय उन सैकड़ों ग्रामीणों के लिए वित्तीय सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करेगा।

क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?

  1. किसानों को न्याय और उचित मुआवजा मिला।
  2. लंबे समय से लंबित विवाद का अंत हुआ।
  3. भविष्य में यमुना चैनलाइजेशन जैसी परियोजनाओं के लिए स्पष्ट मार्गदर्शन मिलेगा।
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