हर समय खुश रहना क्यों जरुरी है !

Toxic Positivity एक ऐसी मानसिक स्थिति है जिसमें इंसान पर हर हाल में “खुश रहने” का दबाव होता है — चाहे वह अंदर से दुखी, थका या टूटा ही क्यों न हो।

जैसे:
“सब अच्छा होगा”,
“सिर्फ पॉजिटिव सोचो”,
“मत रो, स्ट्रॉन्ग बनो”
— ऐसे वाक्य इंसान की असली भावनाओं को दबा देते हैं।

बाहर से यह पॉजिटिविटी दिखती है, पर अंदर से इंसान को:

  • अकेला बनाती है,
  • दबाव में डालती है,
  • और झूठा हंसने पर मजबूर करती है।

यह एक तरह का मानसिक ज़हर क्यों है?

क्योंकि यह हमें हमारी असली भावनाएं:

  • छिपाने,
  • अनदेखा करने,
  • और दबा देने पर मजबूर करता है।

दुख, दर्द, ग़लतियाँ – ये इंसान होने का हिस्सा हैं। इन्हें स्वीकार करना भी जरूरी है।
लेकिन Toxic Positivity कहती है:

“ये मत सोचो, बस मुस्कुराओ!”

Toxic Positivity के लक्षण:

  1. हमेशा मुस्कुराना ज़रूरी समझना – चाहे अंदर से टूटे हों, चेहरा फिर भी हँसता दिखाना।
  2. दुख, गुस्सा या डर को छिपाना – मानना कि ये फीलिंग्स ‘गलत’ हैं।
  3. दूसरों की परेशानी को हल्का समझना – “सब ठीक हो जाएगा” कहकर उनकी भावनाओं को छोटा करना।
  4. Over Positive Statements – “शुक्र करो, औरों की हालत और खराब है” कहना।
  5. Emotional Distance – अंदर से खाली महसूस करना, लेकिन किसी से शेयर न करना।

Toxic Positivity क्यों खतरनाक है?

  • भावनाओं को दबाना = एक दिन भावनात्मक विस्फोट (Emotional Explosion)
  • मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता है – Anxiety, Depression, Guilt बढ़ता है
  • रिश्तों में दूरी आती है – लोग ‘फेक पॉजिटिव’ इंसान से कनेक्ट नहीं कर पाते
  • Self-worth कम हो जाती है – खुद को दोष देने लगते हैं कि “मैं पॉजिटिव क्यों नहीं हूं?”

ऐसे वाक्य जो Toxic Positivity को बढ़ाते हैं:

  • किसी दुखी इंसान से कहना: “कम से कम तुम ज़िंदा हो” – उसका दुख कम नहीं होता।
  • किसी को नौकरी से निकाल दिया गया और कहें: “किस्मत थी, खुश रहो” – ये उसके तनाव को हल्का नहीं करता।
  • खुद अंदर से टूटे हैं, फिर भी सोचना: “मुझे तो पॉजिटिव रहना चाहिए” – ये खुद के खिलाफ जंग है।

Toxic Positivity से बचने के उपाय:

  1. सुनो, जज मत करो – सामने वाले के दर्द को समझो, छिपाओ मत।
  2. Feelings को Feel करो – रोना, थकना, गुस्सा आना इंसानी बात है
  3. Real रहो, Fake नहीं – झूठी मुस्कान से बेहतर है सच्चा दर्द शेयर करना।
  4. “It’s okay to not be okay” – इस बात को रोज़ याद दिलाओ।
  5. पॉजिटिव होना गलत नहीं, पर जबरदस्ती पॉजिटिव बनाना गलत है – बैलेंस ज़रूरी है।

निष्कर्ष:

Toxic Positivity इतनी गहराई से हमारे समाज में घुस गई है कि दुखी होना भी शर्म की बात लगने लगी है। लेकिन सच यह है:

“सच्चा पॉजिटिव बनना मतलब हर भावना को अपनाना – न कि सिर्फ अच्छी दिखने वाली को।”

Source research by me Taken Help of AI to frame it

This Article Is Written By Shreya Bharti, Intern In News World India

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