सरकारी कर्मचारियों की संपत्ति छुपाने, सख्त कार्रवाई

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों की पारिवारिक संपत्ति, आय से अधिक संपत्ति और उससे जुड़े दुरुपयोग के मामलों पर महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने साफ कहा कि अब संपत्ति छुपाने या नियमों की गलत व्याख्या किसी भी हालत में स्वीकार नहीं की जाएगी।

यह मामला जल निगम के कुछ अधिकारियों पर लगे आय से अधिक संपत्ति के आरोपों और उससे संबंधित याचिकाओं की सुनवाई से सामने आया।

चार याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई

मामले में कुल चार याचिकाएं दर्ज थीं:

  • दो जनहित याचिकाएं — अनिल चंद्र बलूनी और जाहिद अली द्वारा
  • दो चुनौती याचिकाएं — अखिलेश बहुगुणा और सुजीत कुमार विकास द्वारा, जिनका कहना है कि आरोप गलत हैं

इन सभी की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने एक साथ की।

परिवार की परिभाषा को लेकर बड़ा निर्देश

हाईकोर्ट ने पाया कि कई सरकारी कर्मचारी परिवार की परिभाषा का गलत इस्तेमाल कर अपने जीवनसाथी या परिजनों की संपत्ति का खुलासा करने से बचते हैं।

कोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा:

“कई अधिकारी यह तर्क देते हैं कि परिजन आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं, इसलिए उनकी संपत्ति बताना जरूरी नहीं। जबकि नियम ऐसी कोई छूट नहीं देते।”

अदालत ने परिवार की सही परिभाषा दोबारा स्पष्ट की:

  • पति/पत्नी
  • पुत्र और सौतेला पुत्र
  • अविवाहित पुत्री और सौतेली अविवाहित पुत्री
  • आश्रित पति/पत्नी
  • रक्त संबंध या विवाह संबंध से आश्रित सदस्य

कोर्ट ने कहा कि सभी विभागों और निगमों में नियम इसी परिभाषा के आधार पर अपडेट किए जाएं।

22 दिसंबर तक नियमों की स्पष्ट गाइडलाइन जारी करना अनिवार्य

अदालत ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि दो सप्ताह में:

  • परिवार की सही परिभाषा
  • संपत्ति खुलासे की बाध्यता
  • गलत जानकारी देने की जवाबदेही

— सभी नियमों को स्पष्ट कर सरकारी गजट में प्रकाशित किया जाए।

कोर्ट ने चेतावनी दी:

“मुख्य सचिव की व्यक्तिगत उपस्थिति अभी आवश्यक नहीं, लेकिन तय समय में अनुपालन न हुआ तो जिम्मेदारी तय की जाएगी।”

आयकर विभाग को फॉरेंसिक ऑडिट का आदेश

हाईकोर्ट ने आयकर विभाग को बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देते हुए कहा कि:

  • दोनों जनहित याचिकाओं की प्रतियां आयकर विभाग को भेजी जाएं
  • संबंधित अधिकारियों, परिजनों और उनसे जुड़ी फर्मों—खासकर कुचू-पुचू एंटरप्राइज—की सभी घोषणाओं और ITR का फॉरेंसिक ऑडिट किया जाए
  • जांच की विस्तृत रिपोर्ट दो सप्ताह में कोर्ट में पेश की जाए

जरूरत पड़ने पर झारखंड से देहरादून तक रिकॉर्ड मंगाने का अधिकार भी विभाग को दिया गया है।

अदालत की सख्ती के बाद सरकारी विभागों में हलचल

कोर्ट की टिप्पणियों के बाद—

  • जल निगम
  • विभिन्न सरकारी निगम
  • अन्य विभागीय सेवाएं

अब संपत्ति खुलासे के नियमों की समीक्षा करने को मजबूर हो गई हैं। माना जा रहा है कि कई कर्मचारियों को अपनी पहले से छुपाई गई संपत्तियों को सामने लाना पड़ेगा।

हाईकोर्ट का स्पष्ट संदेश

अदालत ने टिप्पणी की:

“यदि नियम स्पष्ट नहीं होंगे, तो जवाबदेही तय करना मुश्किल होगा। पारदर्शिता बनाए रखना सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।”

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