ट्रंप की बयानबाज़ी और मोदी सरकार की चुप्पी पर बड़ा सवाल

TRUMP ने कहा I LOVE पाकिस्तान, मोदी चुप-चाप सुनते रहे क्यों ?
दोस्तों, आज जो कुछ हुआ, उसने भारतीय राजनीति और विदेश नीति के मोर्चे पर एक नई बहस छेड़ दी है। सुबह-सुबह देश को यह बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच 35 मिनट लंबी बातचीत हुई है। यह बातचीत उस वक्त हुई जब ट्रंप पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर के साथ ‘बंद कमरे’ में लंच करने जा रहे थे—जहां न कोई प्रेस थी, न ही कोई पारदर्शिता। सवाल उठना लाज़मी था कि आखिर एक ऐसा अमेरिकी नेता, जो पहले ही कई बार पाकिस्तान के पक्ष में बोल चुका है, वो किसी भारतीय प्रतिक्रिया से पहले पाकिस्तान आर्मी चीफ से गोपनीय बातचीत क्यों कर रहा है?
सरकार की ओर से विदेश सचिव विक्रम मिश्री के हवाले से दावा किया गया कि प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप को स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि भारत-पाकिस्तान के मामलों में किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बताया गया कि मोदी जी ने ट्रंप को ‘हड़काया’ और भारत की संप्रभुता पर कोई समझौता नहीं होगा—ऐसा सख्त संदेश दिया। लेकिन ये बात सिर्फ सरकारी दावों तक सीमित रही। किसी ऑडियो या वीडियो के जरिए इस बातचीत की पुष्टि नहीं हुई। विपक्ष ने उसी वक्त सवाल उठाया—क्या आपने वो कॉल सुनी? क्या यह बातचीत सार्वजनिक है? नहीं ना? तो फिर हम सिर्फ सरकार की जुबानी कहानी पर भरोसा क्यों करें?
अब असली ड्रामा शाम को शुरू हुआ। वही डोनाल्ड ट्रंप, जो सुबह ‘डांटे गए’ बताये जा रहे थे, उन्होंने खुद मीडिया के सामने आकर दावा कर दिया कि “मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाया। मोदी और मुनीर दोनों ने मेरी मदद की। मोदी एक शानदार व्यक्ति हैं, लेकिन युद्ध मैंने रुकवाया। और हां—I love Pakistan.” उन्होंने बार-बार यही बात दोहराई। इतना ही नहीं, उन्होंने ये भी कहा कि कोई पत्रकार इस पर स्टोरी क्यों नहीं लिख रहा? क्या ये कोई छोटी बात है?
यह बयान सीधे-सीधे भारत की विदेश नीति पर चोट थी। और सबसे बड़ी बात—इसका सीधा खंडन आज तक मोदी सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री ने खुद नहीं किया। जब सरकार की ओर से दिन में कहा गया था कि युद्धविराम सिर्फ भारत-पाक आर्मी के बीच बातचीत का नतीजा था, तो फिर ट्रंप का यह दावा क्या साबित करता है? क्या वह भारत को झूठा साबित कर रहे हैं?
अब कांग्रेस और विपक्ष मोदी सरकार पर टूट पड़ा है। सुप्रिया श्रीनेत, पवन खेड़ा जैसे नेताओं ने खुलकर कहा कि अगर ट्रंप झूठ बोल रहे हैं, तो मोदी खुद सामने आकर इसका खंडन क्यों नहीं कर रहे? प्रधानमंत्री हमेशा किसी प्रतिनिधि के पीछे क्यों छिप जाते हैं? आखिर मंच से ट्रंप का नाम लेने में क्यों हिचक होती है? क्या भारत की विदेश नीति अब इतनी कमजोर हो चुकी है कि हर बार अमेरिकी नेताओं की रहमोकरम पर निर्भर रहे?
सवाल यह भी है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप बार-बार भारत-पाक युद्ध में अपनी मध्यस्थता की बात कर रहे हैं और मोदी सरकार हर बार इसका खंडन करवाने के लिए प्रवक्ताओं और अधिकारियों का सहारा ले रही है, तो सच क्या है? सरकार की कहानी या ट्रंप की जुबानी?
यह पूरा मामला अब सिर्फ कूटनीति नहीं, भारत की गरिमा और नेतृत्व की पारदर्शिता का प्रश्न बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए कि वे खुद सामने आकर ट्रंप के इन बयानों पर सीधा जवाब दें—या तो ट्रंप झूठ बोल रहे हैं, या फिर देश से सच्चाई छिपाई जा रही है। अगर चुप्पी बनी रही, तो विपक्ष के वो आरोप कि “मोदी जी ट्रंप के आगे घुटने टेक चुके हैं”—कहीं ना कहीं जनता की नज़र में सच बनते चले जाएंगे।
तो दोस्तों, आज का बड़ा सवाल यही है—सुबह जो सच बताया गया, वो शाम को झूठ क्यों साबित हो गया? और अगर झूठ नहीं था, तो ट्रंप को भारत की गरिमा पर सार्वजनिक मंच से बयान देने की इजाज़त किसने दी?
आपकी क्या राय है इस घटनाक्रम पर? क्या सरकार को खुलकर ट्रंप के बयान का जवाब देना चाहिए? क्या प्रधानमंत्री को खुद सामने आकर सफाई देनी चाहिए? कमेंट करके अपनी राय जरूर साझा करें।

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