9000 करोड़ के घोटालेमें फंस गए मोदी, इस्तीफा तो देना पड़ेगा !

विजय माल्या के खुलासों से मोदी सरकार पर उठे सवाल: 9000 करोड़ के घोटाले में नया मोड़
बीते दिनों भगोड़े कारोबारी विजय माल्या के 9 साल बाद कैमरे के सामने आकर दिए गए इंटरव्यू ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। दरअसल, विजय माल्या ने यूबर राज शमानी के 4 घंटे लंबे पॉडकास्ट इंटरव्यू में दावा किया कि वो भगोड़ा नहीं हैं, बल्कि भारत सरकार के कुछ प्रमुख नेताओं को सूचित करके देश से गए थे। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को व्यक्तिगत रूप से बताया था कि वे विदेश जा रहे हैं, और यह यात्रा पहले से तय थी, ना कि कोई “स्केलेप प्लान”।
माल्या ने यह भी कहा कि उन्हें चोर कहना गलत है क्योंकि उन्होंने बैंकों से लिए गए 6200 करोड़ के लोन के बदले में अब तक 14000 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की जा चुकी है। बावजूद इसके, उन्हें चोर और भगोड़ा कहना अन्यायपूर्ण है। उन्होंने कहा कि उन्होंने बार-बार बैंकों से सेटलमेंट की बात की लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। यही नहीं, उन्होंने यह भी दावा किया कि बैंकों ने उन्हें कभी भी लोन अकाउंट का स्टेटमेंट नहीं दिया, जबकि उनके वकीलों ने इसके लिए लिखित अनुरोध किए।
माल्या के इस इंटरव्यू के बाद विपक्ष को एक मजबूत राजनीतिक हथियार मिल गया है। आम आदमी पार्टी ने तो यहां तक ट्वीट कर दिया कि विजय माल्या को विदेश भगाने में मोदी सरकार की भूमिका रही है। विपक्ष का आरोप है कि जितने भी बड़े घोटालेबाज विदेश भागे हैं, उन सबको भगाने में भाजपा सरकार की प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका रही है। इस खुलासे ने प्रधानमंत्री मोदी की स्थिति को असहज कर दिया है, क्योंकि जहां पहले केवल सीजफायर को लेकर विपक्ष उन पर हमला कर रहा था, अब यह 9000 करोड़ के लोन फ्रॉड का मामला भी तूल पकड़ता जा रहा है।
माल्या ने इस इंटरव्यू में यह भी स्पष्ट किया कि वह 1988 से ही यूके के निवासी हैं और यह गलत है कि वह अचानक भाग निकले। उन्होंने यह भी कहा कि जब उन्होंने देश छोड़ा, उस समय उनका पासपोर्ट वैध था, लेकिन बाद में सरकार द्वारा उसे रद्द कर दिया गया, जिसके चलते वह लंदन में ही अटक गए। उन्होंने मोदी सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि एक तरफ उनसे 14000 करोड़ की वसूली कर ली गई, दूसरी तरफ उन्हें बदनाम किया गया।
माल्या के इन दावों के बाद विपक्ष का कहना है कि यदि माल्या ने वाकई सरकार को सूचित किया था, तो उन्हें देश छोड़ने क्यों दिया गया? क्या इसमें मोदी सरकार की सहमति थी? और अगर नहीं थी, तो क्यों समय रहते कदम नहीं उठाए गए? यह सारे सवाल अब सार्वजनिक बहस का हिस्सा बन चुके हैं।
इस पूरे प्रकरण के बाद मोदी सरकार पर विपक्ष ने चौतरफा हमला बोल दिया है। कुछ पार्टियों ने तो यह भी इशारा किया है कि आने वाले समय में इस मामले को लोकसभा में जोर-शोर से उठाया जाएगा, और संभव है कि प्रधानमंत्री से जवाब और यहां तक कि इस्तीफे की मांग की जाए। विजय माल्या के इस इंटरव्यू ने निश्चित ही मोदी सरकार के लिए राजनीतिक संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार इन आरोपों पर कोई स्पष्टीकरण देती है या यह मुद्दा चुनावी मौसम में एक और बड़ा विवाद बनकर उभरता है। जनता के मन में सवाल उठ रहे हैं कि क्या वास्तव में 9000 करोड़ के घोटाले में कोई राजनीतिक संरक्षण था? और क्या मोदी सरकार इस संकट से पार पा सकेगी? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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