सत्यजीत रे का घर बचाने की अपील

बांग्लादेश के माइमेनसिंघ से एक दुखद खबर सामने आई — वहां महान फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे का पैतृक घर तोड़ा जा रहा है।
जैसे ही यह जानकारी सामने आई, भारत सरकार ने गहरी चिंता जताई और तुरंत राजनयिक स्तर पर हस्तक्षेप किया।
भारत ने साफ कहा:
“यह सिर्फ एक पुराना मकान नहीं, हमारी सांझी विरासत की अमूल्य धरोहर है।”
क्यों खास है यह घर?

यह वही ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ सत्यजीत रे के दादा उपेन्द्रकिशोर रे चौधरी ने
अपने कई साहित्यिक और कलात्मक रचनाएं रची थीं।
यह घर सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि बंगाली नवजागरण, साहित्य, और सिनेमा की जड़ माना जाता है।
सांझी विरासत, सांझी जिम्मेदारी
भारत ने बांग्लादेश से अपील की कि इस घर को संरक्षित किया जाए क्योंकि:
- यह दोनों देशों की सांझी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है
- इसका संरक्षण भावनात्मक और ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी है
- इससे नई पीढ़ियां प्रेरणा लेंगी
- पर्यटन और सांस्कृतिक संबंधों को भी बल मिलेगा
विदेश मंत्रालय ने जताई नाराज़गी
भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने इसे लेकर गहरी निराशा और खेद व्यक्त किया।
मंत्रालय ने इस भवन को
“बांग्ला सांस्कृतिक नवजागरण का प्रतीक” बताया —
और कहा कि भले ही यह इमारत जर्जर हो, लेकिन इसका सांस्कृतिक मूल्य अनमोल है।
भारत ने दिया समाधान: बने एक संग्रहालय
भारत ने सुझाव दिया कि:
- इस घर को गिराने के बजाय सहेजा और पुनर्निर्मित किया जाए
- इसे एक संग्रहालय में बदला जाए, जो भारत-बांग्लादेश की सांस्कृतिक एकता को दर्शाए
- भारत ने इसके लिए वित्तीय और तकनीकी सहयोग की पेशकश भी की है
100 साल पुराना घर, अब टूटने के कगार पर
यह ऐतिहासिक भवन करीब 100 साल पहले उपेन्द्रकिशोर रे चौधरी ने बनवाया था।
विभाजन के बाद, यह बांग्लादेश सरकार के अधीन आ गया और
1989 से ‘माइमेनसिंघ शिशु अकादमी’ के तौर पर उपयोग में लाया गया।
अब सरकार यहां नई सेमी-कंक्रीट इमारत बनाना चाहती है।
अधिकारी बोले: “बच्चों की सुरक्षा ज़रूरी”
स्थानीय अधिकारियों का कहना है:
- पुरानी इमारत जर्जर और खतरनाक हो गई थी
- यहां छोटे बच्चों की आवाजाही रहती है
- इसलिए इसे गिराना मजबूरी बन गया था
- सभी कानूनी मंज़ूरी भी ले ली गई है
निष्कर्ष: सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, आत्मा की विरासत
सत्यजीत रे का पैतृक घर एक ऐतिहासिक इमारत से कहीं ज़्यादा है —
यह भारत और बांग्लादेश की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक है।
भारत की अपील सिर्फ अतीत को बचाने का नहीं,
बल्कि भविष्य को प्रेरणा देने का प्रयास भी है।
अगर यह घर सहेजा गया, तो यह दोनों देशों के रिश्तों को
और भी गहरा और मानवीय बना सकता है।
(This article is written by Shlok Devgan, Intern at News World India. )

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