शिक्षक पांच साल से स्कूल नहीं गए, फिर भी मिला वेतन

“एमपी अजब है, एमपी गजब है” का मशहूर स्लोगन एक बार फिर सच साबित हुआ है। मध्य प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग में लापरवाही का ऐसा मामला सामने आया है जिसने सभी को चौंका दिया।
- सात शिक्षक पिछले पांच साल से स्कूल नहीं गए।
- इसके बावजूद उन्हें हर महीने पूरा वेतन मिलता रहा।
- विभाग को यह गड़बड़ी तब पता चली जब शून्य नामांकन वाले स्कूलों की जांच शुरू हुई।
पांच साल की अनुपस्थिति, फिर भी वेतन
- नीमच, ग्वालियर, इंदौर, सागर, सिवनी और सीहोर जिलों में तैनात इन सात शिक्षकों ने स्कूल में उपस्थिति नहीं दी।
- हैरानी की बात यह है कि उनकी गैरहाजिरी पर कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
- फिलहाल, सभी सात शिक्षकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।
कैसे हुआ खुलासा?
- शिक्षा विभाग ने हाल ही में उन स्कूलों की सूची बनाई जहां कोई छात्र नामांकित नहीं है।
- प्रदेश में ऐसे 230 स्कूल मिले, जिनमें 350 शिक्षक तैनात थे।
- जब इन स्कूलों की गहन जांच हुई, तो सामने आया कि सात शिक्षक पांच साल से गायब थे, फिर भी नियमित वेतन ले रहे थे।
विभाग की कार्रवाई और जवाब तलब
लोक शिक्षण संचालनालय के निदेशक के.के. द्विवेदी ने बताया:
- कुल 29 शिक्षकों पर कार्रवाई की तैयारी है।
- इनमें 12 शिक्षक काउंसलिंग के दौरान अनुपस्थित रहे, 10 ने स्थानांतरण से इनकार किया और 7 पांच साल से स्कूल नहीं गए।
- सभी को नोटिस भेजा गया है।
- दोषी पाए जाने पर वेतन वसूली और सेवा समाप्ति तक की कार्रवाई हो सकती है।
‘सार्थक’ ऐप भी नहीं रोक पाया गड़बड़ी
- शिक्षकों की उपस्थिति के लिए “सार्थक ऐप” लॉन्च किया गया था।
- ऐप के जरिए ऑनलाइन हाजिरी दर्ज होती है और उसी आधार पर वेतन जारी होता है।
- लेकिन इन सात शिक्षकों की अनुपस्थिति ऐप पर दर्ज ही नहीं हुई।
- अधिकारियों का कहना है कि शून्य नामांकन वाले स्कूलों में पदस्थ होने का फायदा शिक्षकों ने उठाया।
राजनीतिक दबाव की कोशिशें
- कई शिक्षकों ने स्थानांतरण से बचने के लिए विधायकों और मंत्रियों से सिफारिश करवाई।
- मकसद था कि उन्हें ऐसे स्कूलों में रखा जाए जहां छात्रों की उपस्थिति न के बराबर है, ताकि बिना काम वेतन मिलता रहे।
विभाग में मचा हड़कंप
इस खुलासे के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा है।
- जिला शिक्षा अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई है कि इतने सालों तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई।
- अधिकारियों का कहना है कि यह चूक बेहद गंभीर है और इसमें जवाबदेही तय की जाएगी।
जनता का आक्रोश और सवाल
- आम जनता और अभिभावक शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं।
- लोग पूछ रहे हैं कि जब सरकार शिक्षा पर हर साल बड़ा बजट देती है तो ऐसे मामलों पर निगरानी क्यों नहीं होती।
- विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना न केवल शिक्षा विभाग की कमजोर निगरानी को उजागर करती है, बल्कि ईमानदार शिक्षकों और विद्यार्थियों के साथ अन्याय भी है।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश का यह मामला सरकारी तंत्र में फैली लापरवाही का ताज़ा उदाहरण है।
- सात शिक्षक पांच साल तक स्कूल न जाकर भी वेतन लेते रहे।
- इससे न सिर्फ सरकारी खजाने को नुकसान हुआ बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े हुए।
अब देखना होगा कि शिक्षा विभाग सिर्फ नोटिस तक सीमित रहता है या फिर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करता है।

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