मोदी के मंत्री घटीसे जाएंगे जेल, सिख की पगड़ी पर चप्पल फेंका

मोदी के करीबी मंत्री सुकांत मजूमदार पर एफआईआर

सिख की पगड़ी पर चप्पल फेंकने का मामला तूल पकड़ा

दोस्तों, इस वक्त एक बड़ा राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बेहद करीबी माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री और पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार पर एफआईआर दर्ज हो चुकी है। वजह? एक ऐसी हरकत जो न सिर्फ़ असंवेदनशील मानी जा रही है, बल्कि एक संपूर्ण समुदाय के सम्मान पर भी आघात करती है। मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो के अनुसार, कोलकाता में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान सुकांत मजूमदार ने एक सिख पुलिसकर्मी की पगड़ी पर चप्पल फेंकी। इस घटना के सामने आते ही सियासी गलियारों से लेकर धार्मिक संगठनों तक गंभीर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

यह घटना 12 जून 2025 को कोलकाता में घटी, जब भारतीय जनता पार्टी द्वारा एक प्रदर्शन आयोजित किया गया था। इस प्रदर्शन का नेतृत्व सुकांत मजूमदार खुद कर रहे थे। प्रदर्शन के दौरान जब पुलिस ने मौके पर पहुँचकर लोगों को हटाने की कोशिश की, तब स्थिति तनावपूर्ण हो गई। इसी दौरान एक सिख व्यक्ति—जो रिपोर्ट्स के मुताबिक सिविल ड्रेस में तैनात पुलिस अधिकारी थे—के ऊपर चप्पल फेंकी गई, जो सीधा जाकर उनकी पगड़ी पर लगी।

सिख धर्म में पगड़ी को सम्मान और पहचान का प्रतीक माना जाता है। इस पर चप्पल फेंकना सिख समुदाय के लिए गहरे अपमान की तरह देखा गया। वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया और सिख संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने इस घटना को “संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा अत्यंत घृणित और शर्मनाक कृत्य” बताया और केंद्र सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की।

कोलकाता पुलिस ने भी तेजी दिखाते हुए इस मामले में एफआईआर दर्ज की है। सुकांत मजूमदार के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने और जानबूझकर अपमान करने जैसी गंभीर धाराएं लगाई गई हैं। चूंकि यह मामला पश्चिम बंगाल का है, जहां ममता बनर्जी की सरकार है, इसलिए स्पष्ट रूप से यह मुद्दा अब तूल पकड़ता जा रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि अगर यह घटना किसी बीजेपी शासित राज्य में हुई होती, तो शायद एफआईआर भी दर्ज नहीं होती।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की घटना से बीजेपी की छवि को नुकसान हो सकता है, खासकर तब जब राज्य में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। सुकांत मजूमदार को पार्टी का सबसे भरोसेमंद चेहरा माना जाता है, लेकिन इस घटना ने उनकी छवि पर गहरा धब्बा लगा दिया है। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व—मोदी और शाह—इस पर कोई प्रतिक्रिया देंगे, या हमेशा की तरह चुप्पी साध लेंगे?

इस मामले ने एक बार फिर देश की राजनीति में धर्म आधारित ध्रुवीकरण, कट्टरता, और सहिष्णुता की कमी जैसे मुद्दों को सतह पर ला दिया है। क्या अब भी यह माना जाए कि “जय श्री राम” के नारे लगाने वालों के अलावा बाकी धर्मों की भावनाएं मायने नहीं रखतीं? क्या संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं को इतनी गैर-जिम्मेदाराना हरकतों की छूट मिलनी चाहिए?

दोस्तों, यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है। यह उस सोच की झलक है, जो आज की राजनीति में धर्म और जाति के ज़रिए नफरत फैलाने को रणनीति मानती है। अब देखना ये है कि ममता बनर्जी की सरकार और कोलकाता पुलिस इस मामले में वास्तविक न्याय तक कैसे पहुँचती है। क्या सुकांत मजूमदार सच में कानूनी कार्यवाही और जेल तक पहुंचेंगे, या यह मामला भी बाकी विवादों की तरह समय के साथ दबा दिया जाएगा?

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