प्रशांत किशोर का बड़ा दांव,बदलेंगे सियासी समीकरण?

बिहार की राजनीति हर दिन नए मोड़ ले रही है। 2025 विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर (PK) और उनकी जन सुराज पार्टी ने नई हलचल पैदा कर दी है।
कभी चुनावी रणनीति बनाने वाले PK अब सीधे मैदान में हैं और नीतीश कुमार व लालू यादव के लंबे शासन पर सवाल उठा रहे हैं।
इस बार उनका फोकस है—जाति से हटकर विकास और रोजगार।
मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग पर फोकस
- PK ने 40 मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर सीधे RJD के वोट बैंक को चुनौती दी।
- साथ ही, अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को साधने की कोशिश भी की है।
नतीजा यह हो सकता है कि चुनाव अब त्रिकोणीय हो जाए और NDA व महागठबंधन दोनों को नुकसान पहुँचे।
जाति बनाम विकास: सबसे बड़ी लड़ाई
बिहार की राजनीति हमेशा जातीय समीकरणों पर टिकी रही है।
- मंडल आयोग के बाद से सिर्फ OBC नेता ही मुख्यमंत्री बने हैं।
- PK ब्राह्मण पृष्ठभूमि से आते हैं, इसलिए चुनौती उनके लिए और बड़ी है।
हालाँकि, उन्होंने साफ कहा है कि वे CM पद के दावेदार नहीं हैं।
उनकी रणनीति है पार्टी को किसी एक जाति तक सीमित न रखकर सभी वर्गों को जोड़ना।
लेकिन यह भी सच है कि बिहार के 57% वोटर अब भी जाति के आधार पर वोट करते हैं।
जन सुराज की पहली परीक्षा
- 2023 के उपचुनाव में जन सुराज ने 4 सीटों पर उम्मीदवार उतारे।
- वोट शेयर करीब 10% रहा।
- हालांकि जीत नहीं मिली, लेकिन इमामगंज और रामगढ़ में पार्टी ने हार-जीत का अंतर प्रभावित किया।
इसका मतलब है कि जन सुराज अभी छोटी पार्टी है, लेकिन उसने खुद को “वोट-कटवा” ताकत साबित कर दिया है।
छोटे दलों का बढ़ता असर
बिहार चुनावों में छोटे दल अक्सर बड़ा खेल बिगाड़ते हैं।
- 2020 में AIMIM ने 5 सीटें जीतकर महागठबंधन को झटका दिया।
- अब BSP और PK की जन सुराज भी 2025 में समीकरण गड़बड़ा सकती है।
खासकर PK, जिन्होंने शुरुआत से ही उपस्थिति दर्ज कराई है, चुनावी राजनीति में नई चुनौती बन सकते हैं।
क्या PK बनेंगे किंगमेकर?
ताजा सर्वे के नतीजे:
- तेजस्वी यादव – 41%
- नीतीश कुमार – 18%
- प्रशांत किशोर – 15%
फिलहाल PK के पास न मजबूत संगठन है, न स्थायी वोट बैंक।
लेकिन अगर विधानसभा त्रिशंकु रही, तो वे किंगमेकर बन सकते हैं।
PK का दावा है कि नीतीश कुमार के “रिटायरमेंट” के बाद JDU कमजोर होगी। इसी वजह से वे लगातार पदयात्रा और जनसंवाद के जरिए जनता तक पहुँच रहे हैं।
नतीजा क्या होगा?
2025 का चुनाव बिहार की राजनीति में बड़ा टर्निंग प्वाइंट हो सकता है।
- PK जीतें या हारें, लेकिन उन्होंने जातीय राजनीति को चुनौती देकर विकास और रोजगार को एजेंडा बना दिया है।
- अब असली सवाल यही है—क्या बिहार की जनता जातीय ढाँचे से ऊपर उठकर वोट करेगी, या फिर राजनीति पुराने ढर्रे पर लौट जाएगी?

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