निमिशा प्रिया मामला: मौत की सज़ा के खिलाफ संघर्ष
निमिशा प्रिया मामला: मौत की सज़ा के खिलाफ संघर्ष

एक भारतीय महिला, जो एक समय विदेश में अपने सपनों को साकार करने निकली थी, आज मौत के साए में जी रही है। केरल की रहने वाली निमिशा प्रिया, यमन की एक जेल में बंद हैं और 16 जुलाई 2025 को उन्हें फांसी दी जा सकती है। यह मामला अब सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का विषय बन गया है।
क्या हुआ था 2017 में?
निमिशा प्रिया एक प्रशिक्षित नर्स हैं, जो बेहतर भविष्य की तलाश में यमन गई थीं। वहां उन्होंने एक स्थानीय नागरिक तलाल अब्दो महदी के साथ मिलकर एक मेडिकल क्लिनिक शुरू किया। लेकिन दोनों के बीच रिश्ते जल्द ही बिगड़ने लगे। आरोप है कि महदी ने निमिशा का पासपोर्ट जबरन अपने पास रख लिया था, जिससे वह भारत वापस नहीं लौट पा रही थीं।
भागने की कोशिश में, उन्होंने कथित रूप से महदी को केटामिन नामक दवा की अधिक मात्रा देकर बेहोश करना चाहा। लेकिन वह दवा जानलेवा साबित हुई, और महदी की मौत हो गई। इसके बाद निमिशा को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
फैसला और फांसी की तारीख
2020 में यमनी अदालत ने निमिशा प्रिया को मौत की सज़ा सुनाई। वे इस समय सना की सेंट्रल जेल में बंद हैं, जो हूथी विद्रोहियों के नियंत्रण वाले इलाके में है। 2023 में यमन के राष्ट्रपति ने उनकी फांसी को मंज़ूरी दे दी, और अब 16 जुलाई 2025 को यह सज़ा पूरी की जा सकती है।
भारत सरकार की सीमित भूमिका
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि भारत और यमन की हूथी सरकार के बीच कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। भारत सरकार ने यमन के कुछ प्रभावशाली शेखों और अभियोजकों से संपर्क किया, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। सुप्रीम कोर्ट में भारत के अटॉर्नी जनरल ने भी स्वीकार किया कि सरकार के पास इस मामले में हस्तक्षेप की सीमित क्षमता है।
क्या ‘खून-बहर’ से बच सकती है जान?
इस्लामी शरिया कानून के अनुसार, मृतक के परिवार को यह अधिकार होता है कि वे मुआवज़ा लेकर आरोपी को माफ कर सकते हैं — जिसे ‘खून-बहर’ या Diya कहा जाता है। निमिशा के परिवार और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने महदी के परिवार को एक मिलियन डॉलर की पेशकश की है। लेकिन महदी के परिवार ने इस पेशकश को ठुकरा दिया, और “सम्मान” के नाम पर माफ करने से इनकार कर दिया।
केरल सरकार की अपील
निमिशा केरल की निवासी हैं, और उनके मामले में अब राज्य सरकार ने सीधा हस्तक्षेप किया है। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपील की है कि वे मानवीय आधार पर इस मामले में हस्तक्षेप करें और निमिशा की जान बचाएं। उन्होंने लिखा —
“यह मामला सहानुभूति और मानवीयता का है। प्रधानमंत्री से निवेदन है कि वे तुरंत संबंधित अधिकारियों से संपर्क करें।”

यह मामला क्यों ज़रूरी है?
निमिशा प्रिया की कहानी प्रवासी भारतीयों की असुरक्षा, महिला सशक्तिकरण की चुनौतियों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की सीमाओं को उजागर करती है। हजारों भारतीय नागरिक इस मामले से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं और सोशल मीडिया पर न्याय और दया की गुहार लगा रहे हैं।
सवाल सिर्फ यह नहीं है कि क्या निमिशा ने गलती की — सवाल यह है कि क्या एक अकेली महिला को, जिसने डर और मजबूरी में कदम उठाया, मौत की सज़ा ही एकमात्र विकल्प है?
(This Article is written by Mohammad Anas Chaudhary , intern at News World India )

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