जॉली LLB 3 रिव्यू: कोर्टरूम में अक्षय-अरशद की धाक

अक्षय कुमार और अरशद वारसी की बहुप्रतीक्षित फिल्म जॉली LLB 3 आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म का क्लाइमेक्स दमदार है, लेकिन सवाल यह है कि क्या कहानी और “जॉलीनेस” पिछली दोनों फिल्मों जैसी पकड़ बना पाती है?
निर्देशक सुभाष कपूर इस बार किसानों की आत्महत्या और भूमि अधिग्रहण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर फोकस करते हैं।
अदालत, व्यंग्य और हास्य का तड़का
- कोर्टरूम ड्रामा के बीच हंसी और व्यंग्य का अच्छा संतुलन देखने को मिलता है।
- अक्षय और अरशद की केमिस्ट्री हॉल में हंसी और जोश भर देती है।
- वहीं, सौरभ शुक्ला अपने शानदार टाइमिंग और अभिनय से फिल्म का दिल बन जाते हैं।
कहानी कहां से शुरू होती है?
फिल्म की कहानी राजस्थान के परसौल गांव से शुरू होती है।
- उद्योगपति हरिभाई खेतान (गजराज राव) किसान राजाराम सोलंकी (रॉबिन दास) की पुश्तैनी जमीन अपने प्रोजेक्ट के लिए लेना चाहता है।
- राजाराम इनकार करता है और कर्ज न चुका पाने की वजह से दबाव झेलता है।
- तहसीलदार की गलती से जमीन अस्थायी रूप से अधिग्रहित हो जाती है।
- आहत होकर राजाराम आत्महत्या कर लेता है।
- कुछ साल बाद उसकी विधवा जानकी (सीमा बिस्वास) केस को अदालत में ले जाती है।
शुरुआत में जगदीश्वर मिश्रा (अक्षय कुमार) जानकी के खिलाफ केस लड़ते हैं। बाद में हालात बदलते हैं और दोनों जॉली मिलकर केस लड़ते हैं।
कोर्टरूम ड्रामा और क्लाइमेक्स
- हाई प्रोफाइल वकील विक्रम (राम कपूर) खेतान की तरफ से केस लड़ते हैं और “विकास” का तर्क सामने रखते हैं।
- मध्यांतर तक कहानी दोनों जॉली की नोकझोंक पर टिकी रहती है।
- हालांकि, हरिभाई की कानूनी टीम के पलटवार थोड़े कमजोर लगते हैं।
- सौरभ शुक्ला का जज किरदार पूरी कहानी को धार देता है।
एक्टिंग और स्क्रीन प्रेजेंस
- अक्षय कुमार के पास दमदार सीन और वन-लाइनर्स हैं।
- अरशद वारसी के साथ उनकी जुगलबंदी मजेदार है।
- सीमा बिस्वास की खामोशी असर छोड़ती है – उनकी आंखों में दर्द और ताकत झलकती है।
- गजराज राव खलनायक के तौर पर याद रहते हैं, भले ही किरदार थोड़ा कमजोर लिखा गया हो।
- राम कपूर सहज नजर आते हैं।
- हुमा कुरैशी और अमृता राव को कम स्क्रीन टाइम मिला है।
- लेकिन सबसे बड़ा आकर्षण – सौरभ शुक्ला की शानदार टाइमिंग और डायलॉग डिलीवरी।
फिल्म का संदेश
फिल्म का मूल संदेश साफ है –
न्याय सबका बराबर होना चाहिए।
क्लाइमेक्स में जगदीश त्यागी का संवाद गूंजता है:
“जब हरिभाई की मर्जी की वैल्यू है, विक्रम की है… तो जानकी राजाराम की मर्जी की वैल्यू क्यों नहीं?”
निष्कर्ष
जॉली LLB 3 मनोरंजन के साथ-साथ एक अहम सामाजिक संदेश देती है।
- कोर्टरूम सीन और कलाकारों की अदाकारी फिल्म की सबसे बड़ी ताकत हैं।
- कुछ जगहों पर कहानी कमजोर पड़ती है, लेकिन क्लाइमेक्स और संदेश दर्शकों को बांधे रखते हैं।

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