केदारनाथ यात्रा अब होगी और भी आसान और सुरक्षित!

उत्तराखंड सरकार ने केदारनाथ जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए एक बड़ी और अहम योजना शुरू की है।
इसके तहत चौमासी से लिंचोली तक 7 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई जाएगी।

यह सुरंग सिर्फ यात्रा को सुविधाजनक नहीं बनाएगी, बल्कि इसे हर मौसम में सुरक्षित और निर्बाध भी बना देगी।

इस योजना की ज़रूरत क्यों पड़ी?

इस परियोजना की नींव उन त्रासदियों से मिली है, जो हम पहले देख चुके हैं:

  • 2013 की विनाशकारी बाढ़
  • 2024 में मूसलधार बारिश और भूस्खलन

इन घटनाओं ने साफ़ कर दिया कि स्थायी और सुरक्षित रास्ता बनाना बेहद जरूरी है, ताकि भविष्य में कभी यात्रा बाधित न हो।

वर्तमान में यात्रा कैसी है?

अभी तीर्थयात्रियों को:

  • गौरीकुंड से केदारनाथ तक लगभग 16 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है
  • यह रास्ता रामबाड़ा और लिंचोली जैसे खतरनाक भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों से होकर गुजरता है
  • मानसून में मार्ग बार-बार बंद हो जाता है, जिससे यात्री फँस जाते हैं या यात्रा रद्द करनी पड़ती है

उदाहरण:

  • जून 2025: भारी भूस्खलन के चलते 40–50 यात्रियों को रेस्क्यू करना पड़ा
  • उसी महीने: जंगलछत्ती में एक हादसे में 2 यात्रियों की मृत्यु और कई घायल

नई सुरंग से क्या बदलेगा?

  • यह 7 किमी लंबी सुरंग चौमासी से शुरू होकर लिंचोली तक जाएगी
  • इसके बाद यात्रियों को सिर्फ 5 किमी पैदल चलकर केदारनाथ पहुँचना होगा
  • कुल मिलाकर पैदल दूरी 16 किमी से घटकर सिर्फ 5 किमी रह जाएगी

सुरंग के प्रमुख लाभ:

  • भूस्खलन और प्राकृतिक खतरों से सुरक्षा
  • मानसून में भी यात्रा बिना रुके जारी
  • बुजुर्गों, महिलाओं और अस्वस्थ लोगों के लिए आसान यात्रा
  • समय और ऊर्जा की बचत

रामबाड़ा से सुरंग क्यों नहीं?

पहले योजना थी कि सुरंग की शुरुआत रामबाड़ा से हो।
लेकिन भू-वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार:

  • वहाँ की ज़मीन अस्थिर है
  • क्षेत्र फॉल्ट ज़ोन में आता है
  • चट्टानें कमजोर और असुरक्षित हैं

इसलिए अब सुरंग चौमासी से शुरू होगी — जहाँ तक पक्की सड़क मौजूद है और वाहन भी पहुँच सकते हैं।

निर्माण और समयसीमा

  • परियोजना को 4–5 साल में पूरा करने का लक्ष्य
  • इसके बाद यात्रा:
    • हर मौसम में संभव होगी
    • भूस्खलन और बारिश से बेफिक्र
    • ज़्यादा आरामदायक और सुरक्षित हो जाएगी

नतीजा क्या होगा?

यह सुरंग सिर्फ एक तकनीकी योजना नहीं है —
यह श्रद्धालुओं के लिए भावनात्मक और सुरक्षित यात्रा का प्रतीक बनेगी।

इसके ज़रिए:

  • उत्तराखंड में तीर्थ पर्यटन और आपदा प्रबंधन में संतुलन आएगा
  • केदारनाथ यात्रा हर मौसम में आसानी से और सुकून के साथ पूरी की जा सकेगी

(This article is written by Shreya Bharti , Intern at News World India.)

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