कुपोषण मानसिक स्वास्थ्य और संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली को कैसे प्रभावित करता है?

कुपोषण का मानसिक स्वास्थ्य और संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे कुपोषण इन पहलुओं को प्रभावित करता है:

संज्ञानात्मक दुर्बलता: आवश्यक पोषक तत्वों की अपर्याप्त मात्रा, खासकर मस्तिष्क के विकास के महत्वपूर्ण चरणों में, संज्ञानात्मक दुर्बलता का कारण बन सकती है। इससे याददाश्त, ध्यान केंद्रित करने, समस्या सुलझाने और समग्र मानसिक कार्यप्रणाली में कठिनाई हो सकती है।

मस्तिष्क के विकास में देरी: विशेष रूप से प्रारंभिक बचपन में कुपोषण मस्तिष्क की संरचना और कार्यक्षमता के विकास में बाधा डाल सकता है। इसका दीर्घकालिक प्रभाव संज्ञानात्मक क्षमताओं और शैक्षणिक प्रदर्शन पर पड़ सकता है।

सीखने की क्षमता में कमी: कुपोषित व्यक्तियों को जानकारी सीखने और याद रखने में कठिनाई हो सकती है। इससे उनकी शिक्षा पर असर पड़ता है और बौद्धिक व सामाजिक विकास के अवसर सीमित हो सकते हैं।

एकाग्रता और ध्यान में कमी: कुपोषण ध्यान केंद्रित करने और लंबे समय तक ध्यान बनाए रखने में कठिनाई पैदा कर सकता है। यह शैक्षणिक प्रदर्शन और दैनिक कार्यों को प्रभावित कर सकता है, जिनमें मानसिक संलग्नता की आवश्यकता होती है।

मानसिक स्वास्थ्य विकारों का बढ़ा हुआ जोखिम: कुपोषण, विशेष रूप से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के रूप में, अवसाद, चिंता और व्यवहार संबंधी समस्याओं जैसे मानसिक स्वास्थ्य विकारों के जोखिम को बढ़ा सकता है।

मिज़ाज और भावनात्मक संतुलन पर असर: पोषक तत्वों के असंतुलन से मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर के स्तर प्रभावित हो सकते हैं, जो मिज़ाज को नियंत्रित करते हैं। इससे चिड़चिड़ापन, मूड स्विंग्स और भावनात्मक अस्थिरता हो सकती है।

कार्यकारी कार्यों में बाधा: योजना बनाना, आयोजन करना और निर्णय लेना जैसे कार्यकारी कार्य कुपोषण के कारण प्रभावित हो सकते हैं। इससे व्यक्ति की रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियों को निभाने की क्षमता पर असर पड़ता है।

तनाव के प्रति संवेदनशीलता: कुपोषित व्यक्ति तनाव के नकारात्मक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं, क्योंकि पोषक तत्वों की कमी शरीर की तनाव से निपटने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है।

यह समझना ज़रूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य और संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली पर कुपोषण का असर उसके समय, अवधि और गंभीरता पर निर्भर करता है। इन प्रभावों को कम करने और मानसिक व संज्ञानात्मक विकास को बेहतर बनाने के लिए शुरुआती पहचान, हस्तक्षेप और बेहतर पोषण बेहद आवश्यक

(This article is written by Shreya Bharti, Intern at News World India. )

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