‘कट्टा’ से ‘मंत्रालय’ तक,आरोप-प्रत्यारोप बदला माहौल

बिहार में चुनाव प्रचार इन दिनों चरम पर है।
6 नवंबर को 121 सीटों पर होने वाले पहले चरण के मतदान से पहले सभी दल पूरी ताकत झोंक चुके हैं।

एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार रैलियाँ कर रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव और राहुल गांधी प्रचार की कमान संभाले हुए हैं।

एनडीए जहाँ विकास और “जंगलराज की याद” दिलाकर वोट मांग रहा है, वहीं महागठबंधन भी अपराध के मुद्दे को उतनी ही तेजी से उठा रहा है।

‘कट्टा’ बनाम ‘मंत्रालय’: चुनाव प्रचार में शब्दों की जंग

चुनाव प्रचार की शुरुआत “जंगलराज” शब्द से हुई थी, लेकिन जैसे-जैसे रैलियाँ बढ़ीं, नेताओं की भाषा भी और तीखी होती गई।
आखिरी दिनों में सबसे ज़्यादा चर्चा दो शब्दों की रही — ‘कट्टा’ और ‘मंत्रालय’

पीएम मोदी का ‘कट्टा’ बयान

30 अक्टूबर, मुजफ्फरपुर की रैली में पीएम मोदी ने कहा कि:

“कट्टा, क्रूरता, कटुता, कुशासन और भ्रष्टाचार—यही जंगलराज की पहचान और RJD की राजनीति की पहचान है।”

2 नवंबर, आरा की सभा में उन्होंने कहा कि:

“RJD ने कांग्रेस के सिर पर कट्टा रखकर मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया।”

यह बयान तुरंत राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया।

तेजस्वी यादव का पलटवार

तेजस्वी ने पीएम मोदी की भाषा पर आपत्ति जताते हुए कहा:

“किसी प्रधानमंत्री ने ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया। ऐसा नहीं होना चाहिए।”

इसी बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने एक नई बहस छेड़ दी—“अपमान मंत्रालय”

प्रियंका गांधी का तंज: बने ‘अपमान मंत्रालय’

एक रैली में उन्होंने कहा:

“प्रधानमंत्री का समय देश को रोजगार और विकास देने में लगना चाहिए।
मेरा सुझाव है कि उन्हें एक नया मंत्रालय बनाना चाहिए—अपमान मंत्रालय—क्योंकि वे विरोधियों का अपमान करने में काफी समय लगा रहे हैं।”

इसके जवाब में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अगर तेजस्वी सत्ता में आए तो:

“बिहार में हत्या, अपहरण और वसूली के लिए तीन नए मंत्रालय बनेंगे।”

योगी आदित्यनाथ का हमला: ‘पप्पू, टप्पू और अक्कू’

बिहार प्रचार में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उतरे।
उन्होंने राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव पर हमला करते हुए कहा:

“पप्पू, टप्पू और अक्कू—अखिल भारतीय गठबंधन के तीन बंदर हैं।”

वहीं, तेज प्रताप यादव ने राहुल गांधी पर तंज करते हुए कहा:

“राहुल नेता नहीं, रसोइया होने चाहिए।”

भाषा की गरिमा पर चिंता

बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजय प्रकाश कहते हैं:

“मैं 1990 से चुनाव कवर कर रहा हूँ।
राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीज़—सभी बड़े वक्ता थे।
लेकिन उन्होंने कभी ऐसी भाषा नहीं अपनाई।”

उनका कहना है कि वर्तमान चुनाव में भाषा का स्तर बेहद नीचे चला गया है, और आरोप-प्रत्यारोप अब खुले अपमान में बदल गए हैं।

इन सबके बीच असली मुद्दे फिर हाशिए पर

नेताओं की बयानबाज़ी में तेज़ी के बीच असली चुनावी मुद्दे—

  • रोजगार
  • विकास
  • युवा
  • पलायन

बार-बार पीछे छूट जाते हैं।

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