रावण की पूजा: कानपुर के दशानन मंदिर की परंपरा

दशहरा पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन रावण दहन किया जाता है और लोग खुशियां मनाते हैं। लेकिन कानपुर के शिवाला क्षेत्र स्थित दशानन मंदिर में दशहरे पर एक बिल्कुल अलग परंपरा निभाई जाती है। यहां रावण को जलाने के बजाय उसकी पूजा की जाती है। श्रद्धालु रावण को शक्ति और भक्ति का प्रतीक मानते हैं।

साल में सिर्फ एक दिन खुलते हैं कपाट

  • मंदिर के दरवाजे साल में केवल विजयादशमी के दिन खुलते हैं।
  • सुबह 9 बजे कपाट खुलते ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है।
  • मंदिर के भीतर रावण की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया जाता है और आरती से पूजा शुरू होती है।
  • भक्त तेल के दीये जलाते हैं, पीले फूल चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • शाम को कपाट फिर एक साल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।

रावण की पूजा क्यों होती है?

  • यह परंपरा लगभग 100 साल पुरानी है।
  • मंदिर का निर्माण महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था।
  • मान्यता है कि रावण न केवल महान पंडित था, बल्कि भगवान शिव का परम भक्त भी था।
  • कहा जाता है कि देवी छिन्नमस्तिका ने वरदान दिया था कि उनकी पूजा तभी सफल होगी जब भक्त रावण की भी पूजा करेंगे।
    👉 इसी कारण दशानन मंदिर में रावण की पूजा विशेष महत्व रखती है।

प्रहरी के रूप में रावण की मूर्ति

  • मंदिर में रावण की लगभग 5 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है।
  • यह मूर्ति 206 साल पुरानी है और संवत 1868 में तत्कालीन राजा ने मां छिन्नमस्तिका मंदिर के साथ स्थापित की थी।
  • विजयादशमी पर मां छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद रावण की आरती होती है।
  • श्रद्धालु रावण को सरसों के दीपक और पीले फूल अर्पित करते हैं।

भक्तों का उत्साह

  • दशहरे के दिन मंदिर में सुबह से ही भारी भीड़ रहती है।
  • भक्त दूर-दूर से आते हैं और रावण की पूजा करते हैं।
  • पूरा मंदिर परिसर दीपों की रोशनी, मंत्रोच्चार और आरती से आध्यात्मिक वातावरण में बदल जाता है।
  • भक्त मानते हैं कि पूजा से उन्हें शक्ति, साहस और मनोकामनाओं की पूर्ति मिलती है।

पूजा का संदेश

इस परंपरा से यह संदेश मिलता है कि—

  • शक्ति और भक्ति का सही उपयोग जीवन में सफलता लाता है।
  • रावण की पूजा हमें सिखाती है कि केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि भक्ति और संतुलन भी जरूरी है।
  • यह परंपरा भक्तों में श्रद्धा, आत्मबल और आध्यात्मिक चेतना का संचार करती है।

निष्कर्ष
कानपुर का दशानन मंदिर अपनी अनोखी परंपरा के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है। साल में केवल एक दिन खुलने वाले इस मंदिर में रावण की पूजा शक्ति और भक्ति के अनूठे संगम को दर्शाती है। यह परंपरा न सिर्फ ऐतिहासिक महत्व रखती है, बल्कि समाज को एक गहरा संदेश भी देती है—कि सही दिशा में प्रयोग की गई शक्ति और भक्ति ही जीवन में संतुलन और सफलता का आधार है।

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