बढ़ती गर्मी, पुरानी यादें और ‘जंगलराज’ की गूंज

जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आ रहे हैं, राज्य का सियासी तापमान तेजी से बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और एनडीए के शीर्ष नेता लगातार उस दौर की याद दिला रहे हैं जिसे वे ‘जंगलराज’ कहते हैं — यानी लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की सरकार का समय।

मोदी अपने भाषणों में खुलकर कह रहे हैं:

“जिस दौर में बिहार ने भय, भ्रष्टाचार और नरसंहार झेला, उसे दोबारा लौटने नहीं देना चाहिए।”

20 साल की नीतीश कुमार सरकार के बावजूद, एनडीए का मुख्य फोकस आज भी उसी दौर पर है। बीजेपी-जेडीयू नेताओं के अनुसार, तेजस्वी यादव को वोट देना मतलब उसी अंधेरे युग की वापसी

इसी राजनीतिक माहौल में एक बार फिर चर्चा में है —

✅ लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार: बिहार का सबसे खूनी अध्याय

जब इंसानियत कांप उठी — 30 नवंबर 1997 की रात

30 नवंबर–1 दिसंबर 1997 की रात, अरवल जिले के लक्ष्मणपुर-बाथे गांव में 58 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। आरोप रणवीर सेना पर लगा।

इस क़त्ल-ए-आम में—

  • बच्चे
  • महिलाएं
  • गर्भवती महिलाएं

सभी को बेरहमी से मार दिया गया।
गोलियों की आवाज़, चीखों की गूँज—पूरा गांव दहशत का जंगल बन गया।

कई परिवारों में एक भी सदस्य जीवित नहीं बचा

उजड़े घर, बची सिर्फ दर्दभरी यादें

विमलेश राजवंशी के पिता, दोनों भाई और दोनों भाभियां—सभी की हत्या कर दी गई। परिवार में सिर्फ वही किसी तरह बच पाए।

दुखिया देवी के पति और दो बेटों का गला रेत दिया गया। मछली पकड़कर लौटते वक्त पूरी फैमिली खत्म कर दी गई।

आज भी गांव की हवा में उस रात की चीखें तैरती महसूस होती हैं।

न्याय की लंबी जंग और अनुत्तरित सवाल

2010 में एक विशेष अदालत ने—

  • 16 दोषियों को फांसी
  • 10 को उम्रकैद

की सजा सुनाई।

लेकिन 2013 में पटना हाई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी को बरी कर दिया।

इस फैसले ने पूरे बिहार को झकझोर दिया।
और आज भी सवाल वही है:

58 लोगों की हत्या आखिर किसने की?

जंगलराज बनाम सुशासन — चुनावी लड़ाई का केंद्र

एनडीए इस घटना का जिक्र करते हुए जनता को याद दिला रहा है कि एक समय बिहार में—

  • अपहरण
  • नरसंहार
  • गुंडाराज
  • भय

सब सामान्य थे।

मोदी की रैली की एक पंक्ति खास चर्चा में है:

“उस समय बेटियां शाम होते ही घरों में कैद हो जाती थीं।”

बीजेपी और जेडीयू का दावा है कि “अगर चुनाव में गलती हुई, बिहार 20 साल पीछे चला जाएगा।”

क्या बिहार दोबारा उस दौर में लौट सकता है?

लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार सिर्फ एक घटना नहीं—
यह उस पूरे दौर का प्रतीक है जब बिहार में कानून नहीं, डर का शासन चलता था।

और यही वजह है कि 2025 का चुनाव सिर्फ सत्ता का नहीं, बल्कि अतीत बनाम भविष्य का मुकाबला बन चुका है।

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