उत्तर भारत में कितनी बची हैं बीएसपी ?…उसका ये कदम ताबूत में आखिरी कील तो नहीं ?
बसपा अक्सर सुर्खियों में रहती हैं कभी सांसद टूटने पर कभी विधायक टूटने पर तो कभी नेताओ को बाहर का रास्ता दिखाने पर लेकिन इस बार इस सब वजहों से चर्चे में नहीं हैं बल्कि उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा पर चर्चा में हैं,
आज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखते हुए कहा 1. बीएसपी देश में लोकसभा का आमचुनाव अकेले अपने बलबूते पर पूरी तैयारी व दमदारी के साथ लड़ रही है। ऐसे में चुनावी गठबंधन या तीसरा मोर्चा आदि बनाने की अफवाह फैलाना यह घोर फेक व गलत न्यूज़। मीडिया ऐसी शरारतपूर्ण खबरें देकर अपनी विश्वसनीयता न खोए। लोग भी सावधान रहें।
2. ख़ासकर यूपी में बीएसपी की काफी मज़बूती के साथ अकेले चुनाव लड़ने के कारण विरोधी लोग काफी बैचेन लगते हैं। इसीलिए ये आए दिन किस्म-किस्म की अफवाहें फैलाकर लोगों को गुमराह करने का प्रयास करते रहते हैं। किन्तु बहुजन समाज के हित में बीएसपी का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला अटल।
अब बसपा का अकेले चुनाव लड़ना उसे कितना फायदा या नुकसान होगा वो तो चुनाव परिणाम ही बताएगा,
बसपा जो पिछले एक दशक पहले उत्तर भारत में सबसे प्रभावशाली राजनीतिक दलों में गिनती होती थी, जिसके 20 से ज्यादा सांसद और उत्तर भारत के कई राज्यों में सैकड़ों विधायक हुआ करते थे, वो आज अपने जनाधार को खोती हुई नजर आरही हैं, पिछले 3 लोकसभा और 3 विधानसभा की बात करे तो ये साफ साफ दिख रहा हैं की जनता का बसपा के प्रति विश्वसनीयता कम हुई हैं,
उत्तरप्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनाव बीएसपी अपने दम पर लड़ी और 208 सीट जीत कर अपने दम पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई,2012 के चुनाव में बसपा 80 सीट तो 2017 में 18 पर पहुच गई और 2022 उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में बसपा के खाते में 1 सीट आई,
वही लोकसभा के आखिर के तीन चुनाव परिणामों पर नजर डाले तो कुछ खास नहीं रहा है जहा 2009 में 21 सांसद चुनके संसद पहुचे वही 2014 में बसपा का खाता तक नहीं खुला 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा बसपा का गठबंधन हुआ तो पार्टी में नई जान आई इस गठबंधन से सपा का तो कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन बसपा जो पिछले आम चुनाव में शून्य पर थी उसको 2019 के आम चुनाव में 10 सीटे जरूर मिली।
मौजूदा हालत में उन दशो सांसदों में से अंबेडकर नगर से सांसद रितेश पाण्डेय और अमरोहा से सांसद दानिश अली ने बसपा साथ छोड़ दिया हैं
इन सब के दौरान पार्टी लगातार टूटती रही वही पार्टी के बड़े नेता रामचल राजभर,रितेश पाण्डेय, सुषमा पटेल जैसे दर्जनों नेता पार्टी छोड़ कर चले गए, और ये सिलसिला उत्तर प्रदेश में नहीं बल्कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में भी रहा, 2023 आए आते पार्टी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज छिन गया अब सवाल ये उठता हैं के आने वाले वक्त में बसपा की लोगों को कैसे अपने से जोड़ पाएगी क्या बसपा के लिए 2024 के आम चुनाव में गठबंधन न कर के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी की ये उसकी पहल उसको इस चुनाव में एक नई पहचान देगी।
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