राहुल गांधी का जातीय मिशन और आरजेडी को झटका

UNSTOPPBLE….. ROK SAKO TO ROK LO…. RAGA IS BACK सोशल मीडिया पर राहुल गांधी ने आग लगा दी है राहुल गांधी के नाम से कई #TREND कर रहे हैं वैसे ये तो होना ही था राहुल गांधी बिहार चुनाव को लेकर पहले ही कह चुके थे की अब रुकना नहीं है बस चलते रहना है…और आज हुआ भी कुछ ऐसा ही….राहुल को रोकने के लिए बिहार पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद थी….

राहुल गांधी बिहार में न केवल एक्टिव हैं, बल्कि चुनावी पिच को नए तरीके से रोलआउट करने की कोशिश में लगे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के कारण भले कुछ वक्त के लिए कांग्रेस की सक्रियता थम गई थी, लेकिन जैसे ही सीज़फायर का एलान हुआ, राहुल गांधी पूरे राजनीतिक जोश के साथ मैदान में लौट आए। बीते पांच महीने में यह उनका बिहार का चौथा दौरा है—और हर बार एक साफ पैटर्न नजर आता है: जातीय राजनीति, खासतौर पर दलित कार्ड, और बीजेपी नहीं, आरजेडी को असली टारगेट बनाना।

राहुल गांधी का ‘शोषित बनाम सत्ताधारी’ नैरेटिव अब पूरी तरह से जातिगत आकंड़ों और अवसरों की असमानता पर केंद्रित हो चुका है। दरभंगा में दलित छात्रों से मिलने का प्रयास हो या पटना के मॉल में दलित युवाओं के साथ फुले फिल्म देखना—सब कुछ सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है। यह रणनीति सॉफ्ट नहीं, बल्कि सीधे सत्ता और सहयोगियों से टकराने वाली है। पुलिस द्वारा वाहन रोके जाने पर राहुल गांधी पैदल चलते हैं, प्रशासन से बहस करते हैं, और मीडिया कैमरों के सामने सियासी स्क्रिप्ट पूरी करते हैं।

यह भी दिलचस्प है कि जब बीजेपी राष्ट्रवाद के मुद्दे को पूरी ताकत से भुनाने में लगी है, राहुल गांधी उसी वक़्त जातीय न्याय और प्रतिनिधित्व के सवालों को और तेज़ी से हवा दे रहे हैं। भाषणों में वे बार-बार कहते हैं कि “सीनियर ब्यूरोक्रेसी में दलितों की मौजूदगी ज़ीरो है… मेडिकल सिस्टम का मालिक कौन है? 8-10% लोग…” ये बयान सीधे उस व्यवस्था पर हमला हैं, जिसे बीजेपी का समर्थक वर्ग समझा जाता है।

लेकिन राहुल गांधी की रणनीति में सबसे बड़ा टकराव बीजेपी से नहीं, आरजेडी से दिखाई दे रहा है। कांग्रेस, जिसे अब तक आरजेडी की सहयोगी माना जाता था, लगता है कि अब तेजस्वी यादव को भी मुख्य चुनौती समझने लगी है। दरभंगा में छात्रों से मिलने की कोशिश, प्रशासन से भिड़ंत, और प्रियंका गांधी की दिल्ली से कवर फायरिंग—सब कुछ आरजेडी के परंपरागत वोट बैंक को कांग्रेस की तरफ खींचने का प्लान दिखता है। क्या राहुल गांधी अब आरजेडी के समानांतर खड़ा होने की तैयारी कर चुके हैं?

जेडीयू और प्रशासन के मुताबिक, राहुल गांधी को टाउन हॉल की परमिशन दी गई थी लेकिन उन्होंने हॉस्टल में जाने की जिद की, जहाँ आमतौर पर राजनीतिक कार्यक्रमों की इजाजत नहीं मिलती। लेकिन कांग्रेस इसे ‘दलितों से दूरी बनाने की साजिश’ करार दे रही है। दरअसल, राहुल अब हर उस सीन को राजनीतिक रंग दे रहे हैं, जिसमें उन्हें रोका गया हो—चाहे वो संसद हो या हॉस्टल।

बीजेपी को लेकर कांग्रेस पूरी तरह स्पष्ट है कि जातिगत जनगणना का श्रेय बीजेपी लेने नहीं देगी। राहुल गांधी खुलकर कहते हैं कि मोदी सरकार ने दबाव में आकर जातीय गणना पर सहमति दी। लेकिन असली पेंच यह है कि कांग्रेस का यह ‘जातीय कार्ड’ बीजेपी से ज़्यादा नुकसान आरजेडी को पहुंचा सकता है।

राहुल गांधी का जातीय मिशन और आरजेडी को झटका

जातीय राजनीति बनाम राष्ट्रवाद
जब बीजेपी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए राष्ट्रवाद को भुना रही है, राहुल गांधी उसी समय ‘90% बनाम 10%’ का जातीय नैरेटिव गढ़ रहे हैं, जो बिहार की जमीनी राजनीति में ज्यादा असरदार हो सकता है।

बीजेपी नहीं, आरजेडी असली टारगेट
राहुल गांधी की सक्रियता से सीधा खतरा तेजस्वी यादव को है। कांग्रेस अब सहयोगी नहीं, समानांतर दल के रूप में खुद को पेश कर रही है। दिल्ली में AAP के खिलाफ और बिहार में RJD के खिलाफ एक जैसी रणनीति अपनाई जा रही है।

दलित प्रतीकों और संघर्ष की ब्रांडिंग
हॉस्टल जाकर दलित छात्रों से मिलने की कोशिश, पैदल मार्च, पुलिस से बहस—यह सब राहुल गांधी की ‘संघर्षशील’ छवि को गढ़ने का हिस्सा है, जो उन्हें जनता के करीब और ‘हक के लिए लड़ने वाला’ नेता साबित करता है।

कांग्रेस बनाम सिस्टम नैरेटिव
राहुल गांधी बार-बार यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सत्ता, व्यवस्था और संस्थाएं 90% लोगों को बाहर रखती हैं। यह बयानबाज़ी न सिर्फ सामाजिक असमानता को उजागर करती है, बल्कि शासन के ढांचे पर सीधा हमला है।

राजनीतिक सहानुभूति का निर्माण
हर टकराव—चाहे प्रशासन से हो या पुलिस से—राहुल गांधी उसे अपने पक्ष में मोड़ लेते हैं। प्रियंका गांधी की सोशल मीडिया पोस्ट और कांग्रेस की मीडिया रणनीति, इस संघर्ष को ‘सिस्टम बनाम राहुल’ के तौर पर दिखाने की कोशिश करती है।

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