जयप्रकाश नारायण जिन्हें जनता ने दी ‘लोकनायक’ की उपाधी

साल 1920- 18 साल का एक युवक गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ता है. क्रांतिकारी बनने की जिद ऐसी की परिक्षा से सिर्फ 20 दिन पहले ब्रिटिश शिक्षा छोड़ दी. और डॉ. राजेंद्र के बिहार विद्यापीठ में शामिल होने के लिए बिहार नेशनल कॉलेज से अपना नाम वापस ले लिया. आने वाले वक्त में इस नवयुवक ने अंग्रेजो के खिलाफ एक भूमिगत स्वतंत्रता का नेतृत्व किया. बिहार में एक जन आंदोलन का भी नेतृत्व किया. जिसे भारत की राजनीति में एक सुधार के तौर पर देखा जाता है. आज उसी महान नेता जयप्रकाश नारायण के बारे में हम बात करने जा रहे है.

साल 1929 जयप्रकाश नेहरु के निमंत्रण पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए. महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में जल्द ही वो बापू के चहते बन गए साथ ही वो स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी के साथ सबसे पहले लाईन में साथ रहने वाले सैनिकों में से एक बन गए. जयप्रकाश नारायण दो बार आजादी के लिए लड़े.पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में सहयोग दिया तो वहीं दूसरी बार खुद कांग्रेस के खिलाफ यानी इंद्रिरा गांधी की नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए. तो चलिए सबसे पहले बात करते है जेपी के भूमिगत आंदोलन की.

जेपी को पहली बार 1932 में ब्रिटिश राज में सविनय अवज्ञा के खिलाफ नाशिक जेल में डाल दिया गया था. यहां जेपी कई स्वतंत्रता सेनानियों से मिले जिनमें राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन,अशोक महता का नाम शामिल है. WORLD WAR 2 में भारत की भागीदारी का विरोध करने पर उन्हें 1939 में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था. 8 नवंबर 1942 को दिवाली की रात जेपी नाटकीय ढ़गे से जेल से भागने में कामयाब रहे. अगस्त 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन किया तो जेपी ने भूमिगत रहते हुए गांधी के आंदोलन में सहयोग किया. अंग्रेजो ने उनहें जीवित या मृत पकड़ने का आदेश दिया आखिरकार 1943 में जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया. जयप्रकाश नारायण को लोगों ने लोकनायक की उपाधी दी.

जेपी कांग्रेस कुछ चुनिंदा नेताओं में से एक थे जिन्होंने आजादी के बाद कोई भी संसदीय पद स्वीकार नहीं किया. 1948 में जेपी ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. साथ ही विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से प्रेरित होकर अपनी सारी जमीन भूमिहीनों को दान कर दी. अब बात करते है उस क्रांति की जब जेपी कांग्रेस से ही बगावत कर दी.

कांग्रेस पर सब कुछ लुटाने वाले जेपी कैसे हुए कांग्रेस के खिलाफ?

1966 में जब पहली बार इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनी तो जेपी ने उनहें बधाई दी लेकिन धीरे-धीरे दोनों के बीच मतभेद बढ़ने लगे. 1971 में जब इंदिरा केदोबारा पीएम बनने पर जेपी ने बधाई के साथ एक संदेश भी दिया था. जिसमें उनहोंने लिखा था की मुझे राष्ट्रपति चुनाव के समय आपका व्यवहार पसंद नहीं आया. 1974 में जब बिहार में आंदोलनकारी छात्रों के साथ देते हुए बिमार जेपी ने एक ऐतिहासिक साइलेंट प्रोटेस्ट का नेतृत्व किया और विधानसभा को भंग करने की मांग की.

18 मार्च को बिहार पुलिस ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी की जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई. 72 साल के जेपी ने मार्च किया. 5 जून 1974 में जेपी ने पटना के गांधी मैदान में एक बड़ी भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था की हम सिर्फ बिहार विधानसभा को भंग करने के लिए नहीं आए,संपूर्ण क्रांति इसके अलवा कुछ नहीं. लुधियाना,कलकत्ता और पटना में उन पर कई बार हमला किया गया.

ऐसा नेता जिसके आंदोलन से निकले लालू-मुलायम जैसे दिग्गज

12 जून 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यालय ने इंदिरा गांधी को चुनाव में गड़बड़ियों का दोषी पाया. जेपी ने उनसे तत्काल इस्तीफे की मांग की.25 जून 1975 को इंदिरा ने अपात्काल की घोषणा कर दी. इसके एक दिन बाद ही जेपी को उनके सहयोगी मोरारजी देसाई और अन्य विपक्षी नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. परोल पर रिहा होकर जेपी ने बिमार होने के बावजूद दिल्ली के रामलीला मैदान में करीब 1 लाख लोगों को इकट्ठा किया. इंदिरा के खिलाफ आंदोलन में जेपी ने जनसंघ को शामिल किया. जिसके बाद उनके ही आग्रह पर जनसंघ ने जनता पार्टी से विलय कर लिया. 18 जनवरी 1977 बढ़ते आंदोलन के बीच इंदरा को अपातकाल हटाने और नए चुनाव को करवाने के लिए मजबूर होना पड़ा. इंदिरा को हरा कर जनता पार्टी भारत पर शासन करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाई. जेपी साइलेंट किंगमेकर की भुमिका में रहे. उनहोंने कई गैर- कांग्रेसी युवा नेताओं को प्रेरित किया. जिननें लालू प्रशाद, नीतिश कुमार, मुलायम सिंह, रामविलास पासवान, वीपी सिंह का नाम शामिल है. 8 अक्टूबर 1979 अपने 77वें जन्मदिन से ठीक पहले जयप्रकाश नारायण ने अंतिम सांस ली. देश ने अपना लोकनायक खो दिया. आज भी स्वतंत्रता संग्राम और उनकी लोकतंत्र की भावना लोगों के दिन में है.

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